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७७५. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी, जिनसुखसूरि / जिनचन्द्रसूरि, चौवीसी साहित्य, राजस्थानी,
१७६४ खम्भात, 'आदि-आदिकरण आदै नमुं..., अन्त-गावौ गावौ री चौवीसे जिणवर
गावौ...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर, रा.प्रा.वि.प्र., जयपुर ४९१४ ७७६. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी, जिनहर्षगणि / शान्तिहर्षगणि, चौवीसी साहित्य, राजस्थानी,
१८वीं, 'आदि-देख्यौ रे ऋषभ जिणंद..., अन्त-जिनवर चउवीसे सुखदाई...', मु., जिनहर्ष
ग्रन्थावली, पृ. १ से १७ ७७७. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी, जिनहर्षगणि / शान्तिहर्षगणि, चौवीसी साहित्य, राजस्थानी,
१७३८, आदि-रेजीउ मोह मिथ्यातमई.., अन्त–जिनवर चउवीसे...', मु., जिनहर्ष ग्रन्थावली, पृ. १९ ७७८. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी, ज्ञानचन्द्रोपाध्याय / सुमतिसागर वा., चौवीसी साहित्य,
राजस्थानी, १७०१, अ., ह. मुकनजी संग्रह, बीकानेर ७७९. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी, ज्ञानसारोपाध्याय / रत्नराज उ०, चौवीसी साहित्य,
राजस्थानी, १८७५ बीकानेर, 'आदि-ऋषभ जिणंदा आणंद कंद कंदा..., अन्त–गोडेचाजी तें
मुहि सुधि बुधि दीधी...', मु., ज्ञानसार ग्रन्थावली, पृ. १ ७८०. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी, दयासुन्दर / दयावल्लभ, चौवीसी साहित्य, राजस्थानी,
१७४३, अ., ह. विनय. प्रतिलिपि ७८१. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी बालावबोध सह, देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०,
चौवीसी, राजस्थानी, १८वीं, 'मूलादि-ऋषभ जिणंदशु प्रीतडी..., अन्त–चौवीशे जिनगुण
गाईये...', मु., अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल, पादरा ७८२. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी बालावबोध हिन्दी अनुवाद, सज्जनश्री प्र. / ज्ञानश्री,
चौवीसी, राजस्थानी, २१वीं, मु., प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर ७८३. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी हिन्दी अनुवाद, मूल देवचन्द्रोपाध्याय / अनुवादक
उमरावचन्द झरगड़, चौवीसी साहित्य, राजस्थानी, २१वीं, मु., जिनदत्तसूरि सेवा संघ,
बम्बई ७८४. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी, धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, चौवीसी साहित्य,
राजस्थानी, १७७१ जैसलमेर, 'आदि-आज सुदिन मेरी आस..., अन्त–चितधर श्री जिनवर
चौवीसी...', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. १५० ७८५. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी, राजसुन्दर / राजलाभगणि, चौवीसी साहित्य, राजस्थानी,
१७७२, 'आदि-सरस वचन द्यो सरसति..., अन्त-भाव भगति इणि परि गुण गाया...', अ.,
ह. महिमाभक्ति - बड़ा ज्ञान भं., बीकानेर ७८६. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी, लक्ष्मीवल्लभोपाध्याय / लक्ष्मीकीर्त्ति उ०, चौवीसी
साहित्य, राजस्थानी, १८वीं, 'आदि-आज सकल मङ्गल मिले..., अन्त–नित नित प्रणमि चौवीसे जिणवर...', अ.. ह. अभय ग्र..बीकानेर
खरतरगच्छ साहित्य कोश
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