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४६०. कृष्णरुक्मिणीवेली टीका, श्रीसारोपाध्याय / रत्नहर्ष उ०, काव्य, संस्कृत-राजस्थानी,
१७०३, अ., ह. गोविन्द पुस्तकालय, बीकानेर ४६१. कृष्णरुक्मिणीवेली बालावबोध, कुशलधीरगणि / कल्याणलाभ उ०, भाषा काव्य,
राजस्थानी, १६९६, अ., ह. बडा ज्ञान भं.,बीकानेर ४६२. कृष्णरुक्मिणीवेली बालावबोध, जयकीर्त्ति उ० / हर्षनन्दन उ०, भाषा काव्य, राजस्थानी,
१६८६ बीकानेर, अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर ४६३. कृष्णरुक्मिणीवेली बालावबोध, लक्ष्मीवल्लभोपाध्याय / लक्ष्मीकीर्त्ति उ०, भाषा काव्य,
राजस्थानी, १८वीं, अ., ह. पुण्यविजय संग्रह, अहमदाबाद ४६४. कृष्णरुक्मिणीवेली स्तबक, दानधर्म / कमलरत्न, भाषा काव्य, राजस्थानी, १७२७, अ., ह.
महिमाभक्ति - बड़ा ज्ञान भं., बीकानेर ४६५. कृष्णरुक्मिणीवेली स्तबक, शिवनिधानोपाध्याय / हर्षसार उ०, भाषा काव्य, राजस्थानी,
१७वीं, अ., ह. सेठिया लाइब्रेरी, बीकानेर, कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा ७९८१ ४६६. केशरमुनिगणि अष्टक, लब्धिमुनि उ० / राजमुनि, स्तोत्र, संस्कृत, आदि-यस्याभवन्मरुधर
स्थसुरम्यचूण्डा... गा. ९', मु. लब्धि कृतिसन्दोह, पृ. ७१, जिनदत्तसूरि ज्ञान भं., बम्बई ४६७. केशाः कञ्जलिकाशाभाः पद्य व्याख्या, श्रीवल्लभोपाध्याय / जानविमलोपाध्याय. काव्य.
संस्कृत, १७वीं, 'आदि-सारस्वतस्य सूत्रे यत्केशा इति पदं स्फुटम्..., अन्त–कृतश्चायं
श्रीज्ञानविमलामहो. मिश्राणां शिष्य वाचनाचार्य श्रीवल्लभमणिभि...', अ., ह. विनय. प्रतिलिपि ४६८. केशी गौतम चौढालिया, गुमानचन्द / खुश्यालचन्द, रास चौपई, राजस्थानी, १८६७ दशपुर
अ., ह. आचार्यशाखा ज्ञान भं., बीकानेर ४६९. केशी चौपई, अमरविजयगणि / उदयतिलक, रास चौपई, राजस्थानी, १८०६ गारबदेसर,
अ.
४७०. केशी प्रदेशी प्रबन्ध, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६९९
अहमदाबाद, आदि-श्री सावत्थी समोसरया..., अन्त-रायपसेणी सूत्र थी...', मु., समयसुन्दर
कृति कुसुमाञ्जलि, पृ. ५५९ ४७१. केशी प्रदेशी सन्धि, नयरङ्ग वा. / गुणशेखरगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७वीं, अ., ह.
अभय ग्र., बीकानेर ४७२. क्या पृथ्वी स्थिर है?, जिनमणिसागरसूरि / महो० सुमतिसागर, चर्चा, हिन्दी, २०वीं, मु.,
सुमतिसदन, कोटा ४७३. क्षपकशिक्षाप्रकरण, जिनचन्द्रसूरि / जिनेश्वरसूरि, प्रकरण, प्राकृत, १२वीं, अ. ४७४. क्षमाकल्याणोपाध्याय अष्टक स्तोत्र, ?, स्तोत्र, संस्कृत, २०वीं, 'आदि-चिदब्धेः पारज्ञः
स्फुरदमलपंकेरुह... गा. ९', मु., ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. ३०८
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