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निरक्त कोश
जिन्होंने तम को विनष्ट कर दिया, वे उत्तम हैं। ऊर्ध्व वा तमस इत्युत्तमसः । (आवहाटी २ पृ १२)
जो तम/अन्धकार से परे हैं, वे उत्तम हैं। २९७. उदधि (उदधि) उदकं दधातीति उदधिः ।
(सूचू १ पृ १४८) जो उदक/पानी को धारण करता है, वह उदधि है । २६८. उदयचरग (उदकचरक) उदगे चरंति ते उदगचरगा।
(आचू पृ २०४) जो जल में विचरण करते हैं, वे उदकचरक जलचरप्राणी हैं। २६६. उदर (उदर) उदीर्णान्तः' (उदीर्णन्ति ?) उदीर्यते' वा उदरम् ।'
(उचू पृ १५६) जिसे बार-बार भरा जाता है, वह उदर है।
जिसे बहुत अधिक भरा जाता है, वह उदर है । ३००. उद्देस (उद्देश) उद्दिस्सति जेण सो उद्देसो।
(आचू पृ १०१) जिसके द्वारा उद्देश/निर्देश किया जाता है, वह उद्दश है । ३०१. उद्देसिय (औद्देशिक) उद्दिस्स कज्जइ तं उद्देसियं ।।
(दजिचू पृ १११) जो साधुओं के उद्देश्य से बनाया जाता है, वह औद्देशिक/ भिक्षा का दोष है। १. उत्+ऋ २. उत्+ह ३. 'उदर' का अन्य निरुक्तउनत्यन्नमत्र उदरम् । उदियर्तीति वा उदरम् । (अचि पृ १३६)
जो अन्न को ग्रहण करता है, वह उदर है ।
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