________________
निरुक्त कोश २६०. आहार (आहार) आहारिज्जतीति आहारो।
(आचू पृ २६९) जिसमें से रस का आहरण किया जाता है, वह आहार है। २६१. आहार (आधार) आ सामस्त्येन धारणमाधारः।
(व्यभा ३ टी प १८) जो सम्पूर्णरूप से धारण करता है, वह आधार है । २६२. आहारग (आहारक) चतुर्दशपूर्वविदा आह्रियते-गृह्यते इत्याहारकम् ।
(अनुद्वामटी प १८१) चतुर्दशपूर्वियों द्वारा विशेष प्रयोजनवश जिस शरीर का आहरण/ग्रहण किया जाता है, वह आहारक (शरीर) है। आह्रियन्ते-गृह्यन्ते तीर्थकरादिसमीपे सूक्ष्मा जीवादयः पदार्था अनेनेत्याहारकम् ।
(प्राक ४ टी पृ ४८) जिसके द्वारा केवली के समीप जीव आदि सूक्ष्म पदार्थों का आहरण/परिज्ञान किया जाता है, वह आहारक (शरीर) है। २६३. इंगिणीमरण (इङ्गिनीमरण) इङ्गिते प्रदेशे मरणमिङ्गितमरणम् । (आटी प २६१)
इंगित/संकेतित स्थान में मरण का वरण करना इंगितमरण है। २६४. इंद (इन्द्र) इन्दतीति इन्द्रः।
(अनुद्वामटी प २३६) जो ऐश्वर्यसम्पन्न है, वह इन्द्र है। २६५. इंदगोवग (इन्द्रगोपक) इंदो गोवयतीति इन्द्रगोपको।'
(निचू १ पृ ५) ___ इन्द्र जिसका गोपन/रक्षण करता है, वह इन्द्रगोपक/कीट विशेष है। १. आहरन्ति रसमस्मादित्याहारः। (आप्टे पृ ३७७) २. इदि-ऐश्वर्ये । ३. इन्द्रो-गोपो रक्षकोऽस्य वर्षाभवत्वात्तस्य । (आप्टे पृ ३७५)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org