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२११. आयाण (आदान )
आदीयते - प्रथममेव गृह्यत इत्यादानम् ।
२१२. आयार ( आचार)
जो पहले ग्रहण किया जाता है, वह आदान / प्रारम्भ है ।
आचर्यतेऽसावित्याचारः ।
( दजिचू पृ २७१ ) जिसका आचरण किया जाता है, वह आचार है ।
२१३. आयावय ( आतापक)
२१४. आयावाइ (आत्मवादिन्)
आतापयति-- शीतादिभिर्देहं संतापयतीत्या तापकः । ( औटी पृ ७५ ) जो शरीर को गर्मी, सर्दी आदि से संतप्त करता है, वह आतापक है ।
आत्मानं वदितुं शीलमस्येति आत्मवादी ।
२१५. आया हम्म ( आत्मघ्न )
निरुक्त कोश
( आटी प १६६ )
जो आत्मा का कथन करता है, वह आत्मवादी है ।
२१६. आरंभ (आरम्भ )
आत्मानं दुर्गतिप्रपातकारणतया हन्ति - विनाशयतीत्यात्मघ्नम् ।
( पिटी प ३६ ) जो आत्मा का हनन / विनाश करता है, वह आत्मघ्न / आत्मविनाशक है ।
२१७. आरंभजीवि (आरंभजीविन् )
आरंभेण जीवतीति आरंभजीवी ।
( आटी प २१ )
आरभ्यते—विनाश्यते इति आरम्भः ।
(प्रटी प ६ )
जिसके द्वारा प्राणियों का आरंभ / विनाश किया जाता है, वह आरंभ / हिंसा है ।
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( आच पृ १६२ )
जो आरम्भ / हिंसा से जीवन चलाता है, वह आरम्भजीवी है ।
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