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निरुक्त कोश १३०. अवदालि (अवदारिन्) अवदारयति शकटं स्वस्वामिनं वा विनाशयतीत्येवंशीलोऽवदारी।
(उशाटीप ५४८) ___ जो स्वामी और शकट का अवदारण/विनाश करता है, वह
अवदारी/दुष्ट बैल है। १३१. अवमाण (अवमान) अवमीयते—परिच्छिद्यते खाताद्यनेनेति अवमानम् ।
(अनुद्वामटी प १४२) जिसके द्वारा परिखा आदि का माप किया जाता है, वह अवमान है। १३२. अवलावि (अपलापिन्) अपलपति गूहतीत्येवंशीलोऽपलापी। (व्यभा ३ टी प १८)
जो अपलपन करता है-छिपाता है, वह अपलापी/असत्यभाषी है। १३३. अवहि (अवधि) अवधीयते इति अधोऽधो विस्तृत परिच्छिद्यते, मर्यादया वेति ।
(आवहाटी १ पृ ५) जिससे उत्तरोत्तर विस्तार से जाना जाता है, वह अवधि (ज्ञान) है।
जो अवधि/सीमाबद्ध ज्ञान है, वह अवधि (ज्ञान) है। १३४. अवाय (अपाय) अप अयः-सामस्त्येन परिच्छेदोऽपायः। (नंटी पृ १४५)
जो सम्पूर्णरूप से अवबोध होता है, वह अपाय/निश्चय (ज्ञान) है। १३५. अवायदंसि (अपायदर्शिन्)
अपायान्–अनर्थान् पश्यतीत्येवंशीलः, सम्यगनालोचनायां वा दुर्लभबोधिकत्वादीन् अपायान् शिष्यस्य दर्शयतीति अपायदर्शी ।
(स्थाटी प ४०६)
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