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निरुक्त कोश
१२२. अरह (अरहस्) नास्य रहस्यं ति विद्यते वा अरहा।' (सूचू १ पृ ७६)
जिनके लिए कोई रहस्य नहीं है, वे अ-रह/अर्हत् हैं । १२३. अरहंत (अरथान्त)
अविद्यमानो रथः–स्यन्दनः सकलपरिग्रहोपलक्षणभूतोऽन्तश्च विनाशो जरादयुपलक्षणभूतो येषां ते अरथान्ताः ।
(भटी प ३) जिन्होंने परिग्रहरूपी रथ का तथा जरा-मरण आदि का अंत/ नाश कर दिया है, वे अरथान्त/अर्हत हैं। १२४. अरिहंत (अर्हत्) अरिणो हंता रयं हंता अरिहंता।'
(आवनि १०७६) जो क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करते हैं, वे अरिहंत हैं । जो कर्म-रज का नाश करते हैं, वे अरिहंत हैं ।
'अरह' के अन्य निरुक्तये सच्छकत सद्धम्मा अरिया सुद्धगोचरा । न तेहि रहितो होति नाथो तेन अरह मतो ॥ रहो वा गमनं यस्स संसारे नत्थि सव्वसो । पहीन जातिमरणो अरहं सुगतो मतो ॥ (विटी पृ ४२२)
जो आर्य-धर्मों से रहित नहीं है, वह अरह/अर्हत् है । जिसने संसार का रह/गमन मिटा दिया है, वह अरह/अर्हत् है । २. (क) कोहाई उ अरी ऊ अहव रयं कम्मं होइ अट्टविहं ।
अरिणो व रयं हंता तम्हा उ हवंति अरिहंता। (जीतभा ९८३) (ख) 'अरिहंत' का अन्य निरुक्त
अरा संसारचक्कस्स हता आणासिना यतो। लोकनाथेन तेनेस अरहं ति पवुच्चति ॥ (वि ७/११)
जिसने ज्ञान रूपी तलवार के द्वारा संसाररूपी चक्र के आरों का नाश कर दिया, वह अरहा/अरिहंत है ।
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