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दोष है ।
३७. अच्छेर ( आश्चर्य)
निरुक्त कोश
जो बलात् छीनकर दिया जाता है, वह आच्छेद्य / भिक्षा का एक
आ - विस्मयतश्चर्यन्ते
३८. अजिण ( अजिन )
१.
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जो विस्मयपूर्वक जाने जाते हैं, वे आश्चर्य हैं ।
अजति तेनेत्यजिनम् ।'
३६. अज्झत्थ (अध्यात्म )
- अवगम्यन्त इत्याश्चर्याणि ।
जो रज आदि को फेंकता है, वह अजिन / चर्म है |
अत्ताणं अधिकिच्च वट्टति तं अज्झत्थं ।
जो आत्मा में बरतता है, वह अध्यात्म है ।
आत्मानं प्रति यद्वर्तते तदध्यात्मम् ।
जो आत्मा के प्रति होता है, वह अध्यात्म है । ४०. अभयण ( अध्ययन )
अप्पस्स आणयणं अज्झयणं । "
वह अध्ययन है ।
( स्थाटी प ५०० )
(क) अज - क्षेपणे च चकाराद् गतौ । ( ख ) ' अजिन' शब्द का अन्य निरुक्तअजन्ति तदिति अजिनम् (अचि १४२ )
जो खींची / उतारी जाती है, वह अजिन है ।
( उचू पृ १३८ )
जो अध्यात्म का आनयन / लाभ है, वह अध्ययन है । जेण सुहपज्झयणं अज्झप्पाणयण महियमयणं वा । बोहस्स संजमस्स व मोक्खस्स व तो तमज्झयणं ॥
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( विभा ६० )
जिससे बोधि, संयम और मोक्ष का अधिक अयन / लाभ होता है,
( आचू पृ ३६ )
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( उचू पृ २२६ )
( अनुद्वा ६३१ )
इह निरुक्तविधिना प्राकृतस्वाभाव्याच्च पकारस्सकारआकारणकारलक्षण मध्यगतवर्णचतुष्टयलोपे अज्झयणमिति भवति ।
( अनुद्वामटी प २३२ )
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