________________
३४७
निरुक्त कोश ११५. दंड (दण्ड) दंडणं दंडः।
(निचू १ पृ ७६) जो दण्डित करता है, वह दंड/हिंसा है। ११६. दिक्खा (दीक्षा) दीक्षणं दीक्षा।
(ओटी प ६) व्रतों का स्वीकरण दीक्षा है । ११७. देस (देश) दिसणं देसो।
(आचू पृ १९७) जो दिष्ट कथित होता है, वह देश/कथन है । ११८. दोस (द्वेष) द्वेषणं द्वेषः।
(स्थाटी प २४) __ द्विष्ट होना द्वेष है। ११६. दोस (दोष) दूषणं दोषः।
(पंटी प ३३७) जो दूषित करता है, वह दोष है । १२०. पइट्ठा (प्रतिष्ठा) प्रतिष्ठापनं प्रतिष्ठा ।
(नंटी पृ ५१) जो अर्थ बोध को प्रतिष्ठित करती है, वह प्रतिष्ठा/धारणा
(दटी प ७५)
१२१. पइन्ना (प्रतिज्ञा)
प्रतिज्ञानं प्रतिज्ञा।
संकल्पबद्ध होना प्रतिज्ञा है। १२२. पओग (प्रयोग)
प्रयोजनं प्रयोगः ।
प्रयुक्त करना प्रयोग है।
(स्थाटी प १०१)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org