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निरक्त कोश
न क्षरति-न चलत्यनुपयोगेऽपि न प्रच्यवत इत्यक्षरम् ।
(नंटि पृ १५८) जो अनुपयोग अवस्था में भी क्षरित विस्मृत नहीं होता, वह अक्षर है। १६. अक्खात (आख्यात) आख्यातीत्याख्याता ।
(सूचू २ पृ ३१७) जो कथन करता है, वह आख्याता है । २०. अक्खाय (आख्यात)
आ-मर्यादया जीवाजीवलक्षणतारूपया अभिविधिना वा समस्तवस्तुविस्तारख्यापनालक्षणेन कथितं आख्यातम् । (स्थाटी प ७)
मर्यादापूर्वक विस्तार से कथन करना आख्यात है। २१. अक्खीण (अक्षीण) यद्दीयमानं न क्षीयते स्म तदक्षीणम् । (स्थाटी प ५)
जो देने पर क्षीण नहीं होता, वह अक्षीण है । २२. अक्खेवणो (आक्षेपणी) आक्षिप्यते मोहात् तत्त्वं प्रत्याकृष्यते श्रोताऽनयेत्याक्षेपणी ।
(स्थाटी प २०४) जिससे श्रोता तत्त्वज्ञान और चारित्र के प्रति आकृष्ट होता है, वह आक्षेपणी (कथा) है। २३. अग (अग) अगमणाद् अगा।
(दअचू पृ ७) न गच्छंतीति अगा।
(आचू पृ २३) जो गति नहीं करते, वे अग/वृक्ष हैं । २४. अगम (अगम) न गच्छंतीति अगमा।
(दजिनू पृ ११) जो गति नहीं करते, वे अगम/वृक्ष हैं।
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