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निरुक्त कोश
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जो स्व और पर की शुद्धि करता है, वह शोधी/शोधि
करने वाला है। १७३१. हंस (हंस) हसन्तीति हंसाः ।
(उचू पृ २१४) जो सदा प्रसन्न रहते हैं, वे हंस हैं। १७३२. हक्कार (हाकार)
ह इत्यधिक्षेपार्थस्तस्य करणं हक्कारः। (स्थाटी प ३८२)
(तिरस्कार पूर्वक) हाय ! शब्द उच्चारण करना हाकार
(नीति) है। १७३३. हट्ठकारग (हठकारक) हठेन कुर्वन्ति ये ते हठकारकाः ।
(प्रटी प ४६) जो हठपूर्वक चोरी करते हैं, वे हठकारक/चोर हैं । १७३४. हण (हन) हणतीति हणो।
(आचू पृ २३०) जो हनन करती है, वह हन/हिंसा है। १७३५. हणुय (हनुक) हंतीति हणुया।
(आचू पू २७६) जो चबाता है, वह हनुक/ऊपर का जबड़ा है। १७३६. हत्थ (हस्त)
। हन्यतेऽनेनेति हस्तः। १. 'हंस' का अन्य निरुक्तहन्ति सुन्दरं गच्छतीति हंसः । (शब्द ५ पृ ४६६)
जो सुन्दर गति से चलता है, वह हंस है। २. हन्ति कठोरद्रव्यादिकमिति हनुः । (शब्द ५ पृ ५०३) ३. 'हस्त' का अन्य निरुक्तहसति विकशतीति हस्तः । (अचि पृ १३३) जो बढ़ता है, वह हाथ है।
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