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निरुक्त कोश
१४४२. विह (विध) विधीयते-क्रियते कार्यजातमस्मिन्निति विधम् ।
(भटी पृ १४३१) जिसमें कार्य किया जाता है, वह विध/आकाश है। १४४३. विहंगम (विहङ्गम)
विहायसा गच्छंतीति विहंगमा। (सूचू १ पृ६८)
___ जो आकाश में विचरण करते हैं, वे विहंगम/पक्षी हैं। विहे-विहायोगतेरुदयादुद्गच्छन्तीति विहङ्गमाः। (दटी प ७१)
जो विहायोगति नामकर्म के उदय से उड़ते हैं, वे विहंगम
पक्षी हैं। १४४४. विहाण (विधान)
विविक्तं-इतरव्यवच्छिन्नं धानं--पोषणं स्वरूपस्य यत् तद् विधानम् ।
(प्रज्ञाटी प ५०१) जो दूसरों से व्यवच्छिन्न करने वाले स्वरूप का पोषण
करता है, वह विधान है। १४४५. विहाय (विहायस्)
विशेषेण होयते-त्यजते तदिति विहायः । (भटी पृ १४३१)
जिसमें विशेष रूप से वस्तुओं को छोड़ा जाता है|रखा
जाता है, वह विहायस्/आकाश है। १४४६. विहार (विहार)
विहरन्त्यस्मिन् प्रदेश इति विहारः। (उशाटी प ५४४)
जिसमें विहरण किया जाता है, वह विहार प्रदेश है। १४४७. विहार (विहार)
विविहपगारेहिं रयं हरइ जम्हा विहारो उ। (व्यभा ४/१/१८)
जा विविध प्रकार से कर्मरज का हरण करता है, वह विहार/गीतार्थ है।
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