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१४२१. वियड ( विकट )
विगतजीवं विगडं ।
१४२२. वियाण ( वितान )
जो जीवरहित है, वह विकट / अचित्त / प्रासुक है ।
वितण्णत इति वियाणं ।
१४२३. वियाग ( विजानक)
जो फैलाया जाता है, वह वितान / चंदवा है |
१४२४. वियालचारि ( विकालचारिन् )
विकालेsपि रात्रावपि चरतीति विकालचारी |
सव्वं जाणइति वियाणगो ।
जो सब कुछ जानता है, वह विजानक / सर्वज्ञ है |
१४२५. विवाहित ( व्याख्यात)
विविहं आहिते वियाहिते ।
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१४२६. विरत (विरत )
( आचू पृ ३०८ )
(ओटी पृ १९४)
जो विकाल / रात्री में गमन करते हैं, वे विकालचारी हैं ।
१४२७. विवज्जास ( विपर्यास)
निरुक्त कोश
( निचू १ पृ १५७ )
विपरीततामेवैति विपर्यासः ।
( आचू पृ १६७ )
जो विविध प्रकार से आख्यात / कथित है, वह व्याख्यात है ।
पाणवहादीहि आसवदारेहि पविरमइत्ति विरए । ( दजिचू पृ ३३४ ) जो आश्रवों से विरत रहता है, वह विरत / मुनि है ।
( नंचू पृ १ )
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( सूचू १ पृ ४८ )
जो विपरीतता का रक्षण करता है, वह विपर्यास है ।
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