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निरुक्त कोश
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१२६३. लाबु (अलाबु)
लवतीति लाबुं ।
जो काटा जाता है, वह अलाबु है । आदानार्थेन वा युक्तं ला आदाने इति लाचं तं अलाबु' भण्णति ।
(अनुद्वाचू पृ ४६) ____ जो जल आदि पदार्थ ला/ग्रहण करता है, वह लाबु/अलाबु
१२६४. लाला (लाला) ललतीति लाला।
(आचू पृ ८५) जो टपकती है, वह लाला/लार है ।
जो श्लिष्ट करती है, वह लाला/लार है। १२६५. लाह (लाभ) लभ्यते लाभः।
(स्थाटी प २३६) जो प्राप्त होता है, वह लाभ है। १२६६. लिंग (लिङ्ग)
लिङ्ग यते साधुरनेनेति लिङ्गम् । (आवहाटी २ पृ २३)
जिसके द्वारा साधु पहचाना जाता है, वह लिंग वेष है । १२६७. लिंग (लिङ्ग) लीनमर्थं गमयतीति लिङ्गं ।
(सूचू २ पृ ४३१) जो लीन/छिपे अर्थ का ज्ञान कराता है, वह लिङ्ग/लक्षण है । १२६८. लूस (लूष)
लूषयति कर्ममलमपनयतीति लूषः। (स्थाटी प १७४)
___ जो कर्ममल को दूर करता है, वह लूष/मुनि है । १२९६. लूसग (लूषक) लूसंतीति लूसगा।
(आचू पृ २४२) जो लूटते हैं, वे लूषक हैं। १. 'अलाबु' का अन्य निरुक्त
न लम्बते अलाबुः। (शब्द १ पृ १२०)
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