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________________ • निरक्त कोश ११३३. भंजग ( भञ्जक ) भज्जतीति भंजका । ११३४. भंत (भ्रान्त) अहवा मंतोऽवेओ' जं मिच्छत्ताइबंधहेऊओ । ( अचू पृ ७) जिनका भंजन / छेदन किया जाता है, वे भञ्जक / वृक्ष हैं । है । - ११३५. भंत ( भगवत् ) अहवेसरियाइ भगो' विज्जइ से तेण भगवंतो' । जो मिथ्यात्व आदि से भ्रांत / रहित है, वह है । Jain Education International ( विभा ३४४८ ) भ्रांत / भगवान् १. भ्रम - अनवस्थाने । २. इस्सरियख्वसिरिजसधम्मपयत्ता मया भगाभिक्खा | ते ते सममण्णा संति जओ तेण भगवंते ॥ (विभा १०४८ ) २१३ जो भग / ऐश्वर्य से युक्त है, वह भगवान् है । ( विभा ३४४८ ) 'भग' शब्द के छह अर्थ हैं - ऐश्वर्य, रूप, लक्ष्मी, यश, धर्म और पुरुषार्थं । जो इनसे युक्त है, वह भगवान् है । ३. 'भगवान्' के अन्य निरुक्त--- भगवा ति वचनं सेट्ठ भगवा ति वचनमुत्तमं । गुरुगारवयुक्त्त सो भगवा तेन वुच्चति । (वि ७/३६) जो शील आदि गुणों में सर्वश्रेष्ठ है, वह भगवान् है । तीसुं भवेसु तण्हासङ्घातं गमनं अनेन वन्तं । भव सद्दतो भ-कारं गमन सद्दतो ग-कारं वन्तसद्दता व कारञ्च दीघं कत्वा आदाय भगवा ति दुच्चति । ( वि७ / ४४ ) भावितसोलो भावितचित्तो भावितपति भगवा । For Private & Personal Use Only (विटी पृ ४५२ ) जिसके शील, चित्त और प्रज्ञा भावित हैं, वह भगवान् www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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