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निरक्त कोश
२०६ ११०७. पोग्गल (पुद्गल)
पूरणाद्गलनाच्च शरीरादीनां पुद्गलः। (भटी पु १४३२)
जिसके शरीर आदि बनते और बिखरते रहते हैं, वह
पुद्गल/जीव है। ११०८. पोत (पोत) पततीति पोतः।
(सूचू १ पृ २८८) जो उड़ान भरता है, वह पोत/पक्षिशावक है । ११०६. पोयय (पोतज) पोतमिव सूयते पोतजा।
(दअचू पृ ७७) जो पोत/शिशु रूप में उत्पन्न होते हैं, वे पोतज हैं । १११०. पोसग (पोषक) पुष्यन्तेऽनेनेति पोषकम् ।
(सूचू १ पृ १०४) जिसके द्वारा स्त्री पुष्ट होती है, वह पोष/योनि है। ११११. पोसह (पौषध)
पोषं-धर्मपुष्टिं धत्त इति पौषधः। (उशाटी प ३१५)
जो धर्म को पोष/पुष्टि देता है, वह पौषध है। १११२. फलिह (परिघ) परिहननात् परिघः।
(स्थाटी प २१०) जो रुकावट पैदा करता है, वह परिघ/अवरोधक है ।
जो चारों ओर से परिनन/चोट करता है, वह परिघ/
कांटेदार दंड है। १११३. फास (स्पर्श) फुसंतीति फासा।
(आचू पृ २३६) जो स्पृष्ट होते हैं, वे स्पर्श हैं । १. पत्-to fly (आप्टे पृ १५५) २. परितो हन्तीति (परिघः)-सर्वतः कण्ट कितो लोहदण्डः ।
(आप्टे पृ ९७४)
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