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- निरुक्त कोश
१०३६. पागार ( प्राकार)
प्रकुर्वन्तीति प्राकाराः ।
प्रकर्षेण सर्यादया च कुर्वन्ति प्राकाराः ।
परकोटे हैं ।
-१०४०. पाठ (पाठ)
जो विशालरूप में तथा सीमा में बनाए जाते हैं, वे प्राकार /
पठ्यते एतदिति पाठः ।
जो पढ़ा जाता है, वह पाठ है ।
१०४१. पाडिपंथिय ( प्रातिपथिक )
१०४२. पाण (प्राण)
आणइ - पाणमइ तम्हा पाणे ।
पन्थानं प्रति योऽन्यः पन्थाः स प्रतिपथ: प्रतिपन्था वा तेन गच्छतीति प्रातिपथिकः । ( सूचू १ पृ ८१ )
प्रतिपथ / अपमार्ग से जाता है, वह प्रातिपथिक है ।
है ।
- १०४३. पाण (प्राण)
प्रकर्षेणानन्तीति - श्वसन्तीति प्राणाः ।
जो अपेक्षाकृत तेज श्वसन क्रिया ( द्वीन्द्रिय आदि ) हैं ।
१०४४. पाण (पान)
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(भ २ /१५)
जो आन-प्राण / उच्छ्वास- निःश्वास लेता है, वह प्राण / जीव
पाणावर पाणं ।
पीयते इति पानम् ।
१६७
( उच् पृ
१८२ )
( उशाटी प ३११ )
जो पीया जाता है, वह पान है ।
( आवनिदी प ४४)
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जो प्राणों का उपग्रह / पोषण करता है, वह पान है ।
( उशाटी प ३७० ) करते हैं, वे प्राण
( आवनि १५८८ )
(आटी प २६४ )
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