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निरुक्त कोश
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वर्णों ( शब्द - शास्त्र ) का जो प्रकृष्ट प्रतिपादन है, वह
प्ररूपणा है ।
१०१०. परोक्ख ( परोक्ष )
परओ पुण अक्खस्सा, वट्टत होइ पारोक्खं । अक्खो जीवो तस्स जं परतो तं परोक्खं ।
अक्ष / आत्मा से व्यक्तिरिक्त (इन्द्रिय ज्ञान होता है, वह परोक्ष है ।
परैरुक्षा -- सम्बन्धनं जन्यजनकभावलक्षणमस्येति परोक्षम् ।
( जीतभा ११ )
( आवचू १ पृ ७)
आदि के द्वारा ) जो
जिसका जन्य - जनकभावलक्षणरूप उक्षा / संबंध पर / दूसरों से होता है (आत्मा से नहीं ), वह परोक्ष है | १०११. पलास ( पलाश )
पलं असतीति पलासो ।
१०१२. पलिउंचण (पलिकुञ्चन )
( स्थाटी प ४६ )
जो पल / मांस खाता है, वह पलाश / राक्षस है ।
परि - समन्तात् कुञ्चयन्ते —— वक्रतामापाद्यन्ते येन कुञ्चनम् ।
जिसके द्वारा सारी प्रवृत्ति वक्र हो जाती है, वह पलिकुञ्चन / माया है ।
१०१३. पलिमंथु ( परिमन्धु)
( अनुद्वा ३२१ )
प्रतिकुंच्यते अन्यथा प्रतिसेवितमन्यथा कथ्यते यया सा प्रतिकुंचना । ( व्यभा १ टी प ५० )
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जिसके द्वारा प्रतिकुंचित किया जाता है / छिपाया जाता है, वह प्रतिकुंचना /माया है ।
तत्पलि
( सूचू १ प १७ )
पगरिसेण संजमो मंथिज्जति जेण सो पलिमंथो ।
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परि - सर्वतो मथ्नन्ति - विलोडयन्ति परिमन्यवः ।
( निचू २ पृ २३७ )
( बृटी पृ १६६७ )
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