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६४. पमेदिल (प्रमेदुर)
अतीव मेदो जस्स सो पमेइलो ।
६५. पमोक्ख ( प्रमोक्ष)
जो अधिक मेद / वसा वाला है, वह प्रमेदुर है ।
प्रकर्षेण मोक्षयति — मोचयतीति प्रमोक्षः ।
६६. पय (पद)
पद्यते - गम्यते इति पदम् ।
जो सर्वथा मुक्त करता है, वह प्रमोक्ष है ।
६७. पयला ( प्रचला )
( स्थाटी प २१७ )
जिसके द्वारा जाना जाता है, वह पद / संख्यास्थान है ।
उपविष्ट ऊर्ध्वस्थितो वा प्रचलत्यस्यां स्वापावस्थायामिति प्रचला । ( स्थाटी प ४२८ )
जिस निद्रा में घर् घर् शब्द सुनाई
है ।
६८. पया (प्रजा) :
नींद के कारण जिसमें बैठे-बैठे या खड़े-खड़े सिर का प्रचलन / डोलना होता है, वह प्रचला / निद्रा - विशेष है ।
प्रचलति घूर्णतेऽस्यामिति प्रचला ।
पयांति पजणेंति वा पया ।
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६६. पयायसाल (प्रजातशाल)
( दजिचू पृ २५३ )
जो पैदा करती हैं, वे प्रजा /स्त्रियां हैं ।
निरुक्त कोश
पयायसाला /
( उशाटी प ६२१ )
वृक्ष है |
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(प्राक १ टी पृ १४) देता है, वह प्रचलान
धविणिग्गता डालमूला साला जेसि पकरिसेण जाता ते
( दअचू पू १७२ ) जिस वृक्ष के अत्यधिक शालाएं / शाखाएं हैं, वह प्रजातशाल /
( आचू पृ ११६ )
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