________________
१७६
निरुक्त कोश
६१२. पज्जोसवणा (पर्यासवना)
पर्याया-ऋतुबद्धिकाः द्रव्यक्षेत्रकालभावसम्बन्धिन उत्सृज्यन्ते -उज्ज्यन्ते यस्यां सा पर्यासवना। (स्थाटी प ४८६)
जिसमें ऋतुबद्ध विहार के सारे पर्याय छोड़ दिए जाते हैं,
वह पर्यासवना/पर्युषणा है। ९१३. पज्जोसवित (पर्युषित) परीति सामस्त्येनोषिता पज्जोसविता। (स्थाटी प २६८)
सम्पूर्णरूप से (धर्माराधना में) निवास करना पर्युषित
६१४. पट्टन (पत्तन) पतन्ति तस्मिन् समस्तदिग्भ्यो जना इति पत्तनम् ।
(उशाटी प ६०५) जहां सभी दिशाओं से लोग आते हैं, वह पत्तन है। ९१५. पडिक्कमण (प्रतिक्रमण) प्रतीपं क्रमणं प्रतिक्रमणं ।
(आवचू २ पृ ५२) (सद्भाव में) पुनः लौट आना प्रतिक्रमण है । ६१६. पडिच्छिअ (प्रतीच्छिक)
गच्छान्तरादागत्य सूत्रस्यार्थस्य वा प्रतीच्छनं प्रतीच्छा, तया । चरति प्रतीच्छिकः।
(व्यमा ४/१ टी प ७६) एक गण से दूसरे गण में आकर सूत्र और अर्थ का ग्रहण
प्रतीच्छा है । जो प्रतीच्छासेवी है, वह प्रतीच्छिक है। ६१७. पडिबोहग (प्रतिबोधक) प्रतिबोधयतीति प्रतिबोधकः ।
(नंटी पृ ५२) जो प्रतिबोध देता है, वह प्रतिबोधक है। ६१८. पडिमाढाइ (प्रतिमास्थायिन्)
प्रतिमया-एकरात्रिक्यादिकया कायोत्सर्गविशेषेणैव तिष्ठतीत्येवंशीलो यः स प्रतिमास्थायी ।
(स्थाटी प २८८)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org