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७५४. तुम्नवाय ( तुन्नवाय )
तुन्नं त्रुटितं वयति--सिव्यति यः स तुम्नवायः ।
७५५. तुलणा (तुलना )
तोत्यते परीक्ष्यते आत्मा यया सा तुलना ।"
जो फटे हुए को सीता है, वह तुन्नवाय / दर्जी है ।
७५६. इच्छिय ( चैकित्सिक)
चिकित्सा चरति जीवति वा चैकित्सिकः ।
( प्रसाठी प ११९ )
जिसके द्वारा स्वयं को तोला जाता है, वह तुलना / तुला है ।
वह चिकित्सक/ वैद्य है ।
( बूटी पू ५७१ )
जो चिकित्सा से आजीविका चलाता है / जीवित रहता है,
७५७. तेण (स्तन)
द्यते येन तुतं ।
स्त्यायत इति स्तेनः ।
जो धन को बटोरता है, वह स्तेन / चोर है । जो समूहरूप में रहता है, वह स्तेन / चोर है । ७५८. तो (तोत्र)
७५. थंडिल ( स्थण्डिल)
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निरुक्त कोश
( नंटी पृ १३९ )
थाणं ददातीति थंडिलं ।
जो व्यथित करता है, वह तोत्र / चाबुक / दोष है ।
स्तनयति स्तेनः । ( अचि पू८६ )
जो चुराता है, वह स्तेन है । (स्तेनन् - धोयें)
(उच् पृ १६० )
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( उच्च पृ ४२ )
( आचू पृ २८६ )
जो स्थान प्रदान करता है, वह स्थण्डिल (भूमी) है ।
१. सवेण सत्तेण सुत्ते, एगत्तेण बलेण य ।
तुला पंचहा वृत्ता, जिणकप्पं पडिवज्जओ । ( वृनि १३२८ )
२. 'स्तन' का अन्य निरुक्त
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