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निरुक्त कोश
१२३.
६३१. णाअ (न्याय) निपूर्वः नितरामीयते गम्यते मोक्षोऽनेनेति न्यायः ।
(व्यभा १ टी प ६) जो निश्चित रूप से मोक्ष को प्राप्त कराता है, वह न्याय
६३२. णाग (नाग) नास्य किंचिदगम्यं नागः ।
(उचू पृ ५६) जिसके लिए कुछ भी अगम्य नहीं है, वह नाग/हाथी है । ६३३. णाग (नाग) नास्य अगमं किंचिन्नागः ।
(उचू पृ १३४) जिसके लिए कुछ भी अगम्य नहीं है, वह नाग/सर्प है । ६३४. णाण (ज्ञान)
णज्जइ अणेणेति नाणं ।
जिससे जाना जाता है, वह ज्ञान है । णज्जति एतम्हित्ति णाणं ।
(नंचू पृ १३) जिसमें ज्ञात होता है, वह ज्ञान है । - ६३५. णाणवि (ज्ञानवित्) ज्ञानं यथावस्थितपदार्थपरिच्छेदकं वेत्तीति ज्ञानवित् ।
(आटी प १५३) ज्ञान यथार्थ को जो जानता है, वह ज्ञानवित् है। ६३६. गागावरणीय (ज्ञानावरणीय) ज्ञानमावृणोतीति ज्ञानावरणीयम् । (स्थाटी प ६१)
जो ज्ञान को आवृत करता है, वह ज्ञानावरणीय (कर्म)
१. 'नाग' का अन्य निरुक्त---- __ नगे भवो नागः । (अचि पृ २७३)
__ जो पर्वत पर पैदा होता है, वह नाग है ।
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