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निरुक्त कोश
६१८. ठियप्प (स्थितात्मन्) णाणदंणचरित्तेसु ठिओ अप्पा जस्स सो ठियप्पा !
(दजिचू पृ ३४७) जो ज्ञान, दर्शन और चारित्र में स्थित है, वह स्थितात्मा
६१६. णंद (नन्द)
नन्दति--समृद्धो भवतीति नन्दः । (औटी पृ १३६)
जो समृद्ध होता है, वह नन्द पुत्र है । ६२०. णंदण (नन्दन) नन्दन्ति तत्रेति नन्दनं ।
(सूचू १ पृ १४७) गंदंति जेण वणयर-जोतिस-भवण-वेमाणिया विज्जाहरमणुया य तेण णंदणं ।
(नंचू पृ ५) जहां व्यंतर, ज्योतिष्क, भवनपति, वैमानिक, विद्याधर और
मनुष्य आनन्द मनाते हैं, वह नंदन (वन) है। ६२१. गंदा (नन्दा) नन्दयति-समृद्धि नयतीति नन्दा।। (प्रटी प १०३)
जो समृद्धि की ओर ले जाती है, वह नन्दा/अहिंसा है । ६२२. गंदी (नन्दी) नन्दन्ति समृद्धिमवाप्नुवन्ति भव्यप्राणिनोऽनयेति नन्दी।
(विभामहेटी १ पृ ४४) जिससे प्राणी समृद्धि को प्राप्त होते हैं, वह नंदी/ज्ञान है। ६२३. णक्खत्त (नक्षत्र) ___ न क्षयं यान्तीति नक्षत्राणि ।
(सूचू १ पृ २००) जिनका क्षय नहीं होता, वे नक्षत्र हैं। १. 'नक्षत्र' के अन्य निरुक्तनक्षति गच्छति व्योमनीति नक्षत्रं । न क्षदति प्रभामिति नक्षत्रम् ।
(अचि पृ २४)
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