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प्रदान किया है । यह कार्य अत्यन्त सराहनीय है । इसमें कितने परिश्रम, चिंतन की अपेक्षा थी, उसकी कल्पना पाठक स्वयं ही करेगा । हमारे संघ में अनेक विद्वान् एवं विदुषियों का निर्माण आचार्यश्री ने किया है, जैसा अन्यत्र प्रायः दुर्लभ है । शोधकार्य में निरत इतना विशाल विद्वन्मंडल विश्वविद्यालयों में भी दृष्टिगोचर नहीं होता । प्रभूत अर्थसाध्य शोधकार्य का निःशुल्क सम्पादन तेरापंथ धर्म में ही संभव है ।
प्रस्तुत कोष का सम्पादन कर साध्वीश्री सिद्धप्रज्ञाजी एवं साध्वीश्री निर्वाणीजी ने एक महत्त्वपूर्ण कार्य को संपन्न किया है । मुझे पूरा विश्वास है कि सुधी समाज में यह ग्रन्थ आदर प्राप्त करेगा ।
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डा० नथमल टाटिया डाइरेक्टर -- शोध विभाग जैन विश्व भारती
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