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निरुक्त कोश
५४४. चाउरंत (चातुरन्त)
चत्वारोऽन्ताः पूर्वापरदक्षिणसमुद्रास्त्रयः चतुर्थो हिमवान् इत्येवं स्वरूपास्ते वश्यतयास्य सन्तीति चातुरन्तः। (जंटी प १८१)
जिसके पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशाओं के समुद्र और हिमवान् पर्वत-ये चारों वश में हैं, वह चातुरन्त/चक्रवर्ती
५४५. चारक (चारक) चारयतीति चारकः ।
(सू चू १ पृ ५२) जो गुप्तचरी करता है, वह चारक गुप्तचर है । ५४६. चारित्त (चारित्र) चियस्स कम्मचयस्स रित्तीकरणं चारित्तं ।' (निचू १ पृ २५)
जो संचित कर्मचय को रिक्त करता है, वह चारित्र है । ५४७. चालणा (चालना)
सूत्रगोचरमर्थगोचरं वा दूषणं चाल्यते-आक्षिप्यते यया वचनपद्धत्या सा चालना।
(बृटी पृ २५८) जिस वचन-पद्धति से सूत्र या अर्थविषयक गुण-दोषों का
चालन/विमर्श किया जाता है, वह चालना/व्याख्या-पद्धति है । ५४८. चिइ (चिति) चीयन्ते--मृतकदहनाय इन्धनानि अस्यामिति चितिः।'
(उशाटी प ३८६) मृतक को जलाने के लिए जहां लकड़ियों का उपचय किया जाता है, वह चिति/चिता है। १. स्वपरराष्ट्रवृत्तान्तज्ञानार्थ राजनियोगेन इतस्ततो भ्रमणकर्तरि चारे ।
(वा पृ २८६८) जो राजाज्ञा से स्वराष्ट्र और परराष्ट्र की प्रवृत्तियों को जानने के लिए इधर-उधर गमन करता है, वह चारक/गुप्तचर
२. चितस्य कर्मणो रिक्तीकरणात् चारित्रम् । (प्राक १ टी पृ १६) ३. चीयतेऽस्यामग्निरिति चितिः । (शब्द २ पृ ४४७)
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