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________________ निरुक्त कोश १०१ जो नगर-द्वार गो/रत्नों से परिपूरित/मंडित होता है, वह गोपुर है। जो नगर-द्वार गो/शोभा से परिपूर्ण है, वह गोपुर है । ५२१. गोय (गोत्र) गुप्यत इति गोत्रं । (सूचू १ पृ २३४) जो रक्षा करता है, वह गोत्र/संयम है। गां त्रायत इति गोत्रम् । (सूटी २ प १६८) जो गो/पृथ्वी/प्राणीजगत् को त्राण देता है, वह गोत्र/संयम ५२२. गोयर (गोचर) गोरिव मध्यस्थतया भिक्षार्थ चरणम् गोचरः।' (बृटी पृ १६६७) - गौ की भांति मध्यस्थभाव से भिक्षा के लिए चार/गमन करना गोचर है। ५२३. गोरहग (दे) गोजोग्गा रहा गोरहजोगत्तणेण गच्छंति गोरहगा। ___ (दअचू पृ १७०) ___ जो रथ में जुतने योग्य हैं, वे गोरहग/बैल हैं। ५२४. घड (घट) घटनाद् घटः। (सूटी २ प १८८) घटते-चेष्टते इति घटः। (स्थाटी प १४६) जो घटित/कार्यकर होता है, वह घट है। जो क्रियाशील होता है, वह घट है। ५२५. घय (घृत) जत्ति घरत्ति वा घतं ।' (उचू पृ ६६) __ जो सिञ्चन करता है, वह घृत है । १. गौरिव परिचितेतरभूभागपरिभावनारहितत्वेन चरणं भ्रमणमस्मिन्निति गोचरः। (उशाटी प ४६२) २. घृ-सेचने । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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