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________________ निरुक्त कोश ८७ क्षमा करोतीति क्षान्तः। (दटी प २६२) जो सहता है, वह क्षान्त है। जो क्षमा करता है, वह क्षान्त है। ४५२. खंतिखमण (क्षान्तिक्षमण) क्षान्त्या क्षमत इति क्षान्तिक्षमणः। (स्थाटी प ४६१) जो क्षान्ति/धृति से सहन करता है, वह क्षान्तिक्षमण है। ४५३. खंध (स्कन्ध) स्कन्दन्ति-शुष्यन्ति धीयन्ते च पोष्यन्ते च पुद्गलानां विचटनेन चटनेन स्कन्धाः । (उशाटी प ६७३) जो पुद्गलों के विघटन से क्षीण और संघटन से पुष्ट होते हैं, वे स्कंध हैं। ४५४. खण (क्षण) खोयते इति खणो। (आचू पृ ५६) जो क्षीण होता है/बीतता है, वह क्षण है । ४५५. खत्तिय (क्षत्रिय) क्षतात् त्रायन्त इति क्षत्रियाः ।' (सूचू १ पृ १४८) क्षत्रेण धर्मेण जीवन्त इति क्षत्रियाः। (सूचू १ पृ १७५) जो क्षत/कष्ट से त्राण देते हैं, वे क्षत्रिय हैं। जो क्षत्रिय धर्म से जीवित रहते हैं, वे क्षत्रिय हैं। ४५६. खमण (क्षमण) खमतीति खमणो। (अनुद्वा ३२०) जो सहन करता है, वह क्षमण है। ४५७. खरकंटय (खरकण्टक) खरा-निरन्तरा निष्ठुरा वा कण्टाः कण्टका यस्मिस्तत् खर कण्टम्। १. क्षदति संवृणोति क्षत्रं । क्षत्रस्य अपत्यम् क्षत्रियः । (अचि पृ १९०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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