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निरुक्त कोश
४२४. कुक्कुय (कुकूज)
कुत्सितं कूजति–पीडितः सन्नाक्रन्दति कुकूजः । (उशाटी प ४८६)
जो आक्रन्दन करता है, वह कुकूज है । ४२५. कुड (कुट) कुटनाद् कुटः, कौटिल्ययोगात् कुट इति । (अनुद्वामटी १२५)
जो टुकड़े-टुकड़े हो जाता है, वह कुट/घड़ा है ।
जो विभिन्न आकारों में मोड़ा जाता है, वह कुट/घड़ा है। ४२६. कुत्थियचारि (कुत्सितचारिन्) कुत्थियं चरतीति कुत्थियचारी। (आचू पृ ३१४)
जो कुत्सित आचरण करता है, वह कुत्सितचारी है । ४२७. कुप्पह (कुपथ) कुत्सिताः पथाः कुपथाः।
(उशाटी प ५०८) जो दूषित पथ है, वह कुपथ है। ४२८. कुमार (कुमार)
काम्यतिऽसौ काम्यति वा क्रीडत इति कुमारः। (उचू पृ २०७)
जिसे सब चाहते हैं, वह कुमार है ।
जो क्रीडा करता है, वह कुमार है। १. 'कुट' का अन्य निरुक्त
कुटति कुटः। (अचि पृ २२६) जो तप्त किया जाता है, वह कुट/घट है। (कुटिण्-प्रतापने, कुटत्-कौटिल्ये) २. 'कुमार' के अन्य निरुक्त
कामयते यदपि तदपि दृष्टं इति कुमारः। कुमारयति क्रीडयति वा कुत्सितो मारोऽस्येति वा । (अचि पृ ७६) जो कुछ देखता है, उसे चाहता है, वह कुमार है। जो क्रीड़ा करता है, वह कुमार है। जिसकी मार/वासना कुत्सित है, वह कुमार है ।
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