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________________ ७8 "निरुक्त कोश ४०६. कासंकस (कासंकष) कासः संसारस्तं कषतीति तदभिमुखो यातीति कासंकषः । ___ (आटी प १३८) जो संसार की ओर जाता है, वह कासंकष/किंकर्तव्यविमूढ़ है । ४१०. कासग (कर्षक) कृषंतीति कर्षकाः। (उचू पृ २०५) जो खेतों का कर्षण करते हैं, वे कर्षक/किसान हैं। ४११. कासव (काश्यप) कासं-उच्छू तस्स विकारो काश्यः-रसः, सो जस्स पाणं सो कासवो। (दअचू पृ ७३) __ जो काश्य/इक्षुरस का पान करते हैं, वे काश्यप/इक्ष्वाकु वंशी हैं। ४१२. काहीअ (काथिक) कथयतीति कथिकः । (सूचू १ पृ ६७) जो कथा करता है, वह काथिक है । ४१३. किंकर (किङ्कर) ____कि करोमीति किङ्करः। (व्यभा ४/२ टी प २६) __ 'क्या करूं' (इस प्रकार आदेश की प्रतीक्षा) करने वाला किंकर/नौकर है। ४१४. किरिया (क्रिया) क्रियन्त इति क्रियाः। (सूटी २ प ४३) जो की जाती हैं, वे क्रियाएं हैं । १. कर्षति भुवं कर्षकः । (अचि पृ १९६) २. काशो नाम इक्खु भण्णइ, जम्हा तं इक्खु पिबंति तेन काश्यपा अभिधीयते । (दजिचू पृ १३२) ३. किं करोमोत्याज्ञां प्रतीक्षते किंकरः । (अचि पृ ८४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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