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जैन आगम वाद्य कोश
(विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-भारतीय संगीत
वाद्य)
नाली (नाड़ी) जीवा. ३ / ७८ नड, नढ़, नाली ।
आकार-मशक की तरह फूंक से बजाया जाने
वाला वाद्य ।
विवरण- इस वाद्य का निर्माण कगोरे के पेड़ की प्राकृतिक लकड़ी से होता है, जो बांस के समान ही होती है। जिस प्रकार शीशी फूंक कर बजायी जाती है, उसी प्रकार इसे भी किनारे से फूंक कर बजाया जाता है। फूंकने वाले स्थान से इसके छिद्र बहुत दूर होते हैं। मुंह की फूंक द्वारा मशक में पूरी हवा भर ली जाती है, फिर बासुरी की तरह उसमें लगी हुई नली पर अंगुली के संचालन से स्वर पैदा किये जाते हैं। इस वाद्य में तीन या चार छिद्र होते हैं। कुछ परिवर्तन के साथ इस वाद्य का प्रचार सिन्ध प्रदेश तक पाया जाता है। यह जैसलमेर की चरवाहा जाति और राजस्थान के भौपों के द्वारा बजाया जाता है।
(विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-राजस्थान का लोक संगीत)
पडह (पटह) औप. ६७, निसि. १७/१३६, पज्जो. ७५, दसा. १०/१७, राज. ७७ ढोलक
पटह, आकार - भेरी के सदृश एक अवनद्ध वाद्य । विवरण- शास्त्रीय और लोक संगीत- दोनों में महत्त्वपूर्ण वाद्य के रूप में प्रयुक्त होने वाला पटह वाद्य आज भी ढोलक के नाम से प्रख्यात है। संगीत ग्रंथों में इसका विस्तार से विवरण प्राप्त है। पटह दो प्रकार का होता है- देशी तथा मार्गी ।
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मार्गी पह
इसकी लम्बाई डेढ़ हाथ से ढाई हाथ तक की होती है तथा बीच का भाग कुछ उठा हुआ होता है। इसके दाहिने मुख का व्यास साढ़े ग्यारह अंगुल तथा वाम मुख साढ़े दस अंगुल का होता है । काठ भीतर से खोखला होता है तथा उसके दोनों मुख गोल होते हैं। दाहिने तथा बांएं मुख पर लोहे अथवा काठ की हंसुली पहना कर उन्हें चमड़े से लपेट दिया जाता है। दाहिने मुख पर पतला चमड़ा तथा वाम मुख पर मोटा चमड़ा मढ़ा जाता है। इन हंसुलियों में सात-सात छेद कर रेशम की डोरी पिरो दी जाती है, जिसमें सोना, पीतल अथवा लोहे के छल्ले डाल दिये जाते हैं, जिन्हें आवश्यकतानुसार खींच कर स्वर मिला लिया जाता है।
देशी पटह
इसकी लम्बाई डेढ़ हाथ की होती है तथा इसका दक्षिण और वाम मुख क्रमशः सात तथा साढ़े छह अंगुल व्यास के होते हैं। शेष बातें मार्गी पटह की भांति ही होती हैं। पटह के लिए खैर की लकड़ी सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। देशी पटह के आकार में
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