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जैन आगम वाद्य कोश
कहकर संबोधित किया है।
फलन मॉझ ज्यों करुई तो मरी रहत धुरे पर डारी । अब तो हाथ परी यन्त्री के बाजत राग दुलारी ॥ आइने अकबरी, संगीत पारिजात आदि में जो त्रितंत्रीवीणा का वर्णन मिलता है, उससे सिद्ध होता है कि सितार और तम्बूरा त्रितंत्री के ही दो विकसित रूप हैं। सौरेन्द्र मोहन ठाकुर ने 'यंत्र क्षेत्र दीपिका' सन् १८८२ के आस-पास लिखी । ठाकुर ने सितार को त्रितंत्री वीणा ही माना है। श्री ठाकुर अभिमत है - त्रितंत्री वीणा को अमीर खुसरो ने हतार कहना शुरू किया जो आगे चलकर सितार के रूप में प्रसिद्ध हुआ ।
(विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-संगीत सार, भारतीय संगीत वाद्य)
तल (तल) राज. ७७, ठाणं ८/१०, दसा. १०/ १८,२४, औप. ६८
तल, ताली, जाल्स
आकार - झांझ और ताल से छोटा ।
विवरण - इस वाद्य का निर्माण कांसे या पीतल से होता है। लगभग ५ सेन्टीमीटर व्यास वाले इस वाद्य के बीच का उभार नहीं के बराबर होता है। इसको एक-दूसरे के आघात द्वारा बजाया जाता है।
(विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-ताल)
ताल (ताल) निसि. १७/१३८, पज्जो. ९,५४, ठाणं ८/१०, दसा. १०/१८,२४
ताल, तार ( ब्रजभाषा) टाड़ (महाराष्ट्र) आकार - सामान्यतः झांझ, मंजीरा से बड़ा । विवरण-ताल-वाद्य अग्नि में शुद्ध किये हुये कांसे से बनाया जाता है, जो दो हिस्सों में होता है। ये
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दोनों भाग लगभग छह अंगुल व्यास के गोल कांसे के बने हुए बीच से दो अंगुल गहरे होते हैं । मध्य में छेद होता है। इन छेदों में डोरी डालकर भीतर से गांठ लगा दी जाती है जिससे डोरी निकलने न पाये।
इन्हें इस प्रकार बनाया जाता है जिससे इनकी ध्वनि श्रुति मधुर हो । इनमें से जिस ताल की ध्वनि अपेक्षाकृत कुछ ऊंची हो, बाएं हाथ के अंगूठे के भीतर होती हुई उसकी डोरी को तर्जनी में लपेट कर गदेली से पकड़ा जाता है तथा दूसरे ताल की डोरी को दाहिने हाथ की तर्जनी में लपेट कर अंगूठे के अग्र भाग से पकड़ कर बजाया जाता है। बाएं हाथ की शेष अंगुलियां उस हाथ के ताल की ध्वनि को नियंत्रित तथा मुक्त करने का काम करती हैं। इन दोनों तालों में से अल्प नाद वाली ताल अर्थात् बाएं हाथ की ताल शक्तिरूप तथा दाहिने हाथ की ताल शिवरूप समझी जाती है। कृष्ण-भक्त कवियों ने अन्य वाद्यों के साथ ताल वाद्य का बहुलता से वर्णन किया है। ब्रज में इस ताल को ‘तार' भी कहते हैं। महाराष्ट्र में इसी से मिलता-जुलता वाघ 'टाड़' कहा जाता है, जो अन्य लोक वाद्यों के साथ बजाया जाता है। (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य- संगीत दामोदर, वाद्य प्रकाश)
तुंबवीणा (तुम्बवीणा) निसि. १७/१३७, राज. ७७, आचू. ११/२
तम्बूरा, तानपूरा
आकार - आधुनिक सितार के सदृश चार तारों वाली वीणा ।
विवरण- गायकों के लिए तम्बूरा एक महत्त्वपूर्ण तार-वाद्य है। इसे लौकी या कद्दू के तुम्बे से बनाया जाता है। इसमें किसी गाने की सरगम नहीं
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