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तृतीय भागस्य यत्किंचित्
नमो वीतरागाय
आशा अमर छे पण धारेलु कार्य थतु नथी पण थाय तेनाथी संतोष मानवो ज पडे छे. ए हिसाबे 'श्रीअल्पपरिचितसैद्धान्तिक शब्दकोषनो त्रीजो भाग' अमे अत्रे तैयार करी संपादन करि शवया छीए. आ कोषना पहेला बीजा भागमां आपेल 'संपादकीय अने स्वरूपम्' पूर्वनो सम्बन्ध जोडवा अत्रे आपेल है. जो के प्रस्तावना जेवु लखवु छे, उमंग छे, तेवु साहित्य पण भेगु क छे पण अनुकुल सकरना अभावे तेने मुलखी राखी चोथा भागमां लखवानो विचार राख्यो छे.
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आ भागमा 'ट' थी 'प' शुद्धिना शब्दो आव्या छे, ज्यारे चोथा भागमां 'फ' थी 'ह' शुद्धिना शब्दो उपरांत 'रहि गयेला शब्दो' तेमज 'देशी नाममाला वगेरेना' शब्दो पण लेवाना छे. जो चोथा भागमां न समाय तो आगल विचाराय.
केशरीचन्द हीराचन्द झवेरीए तैयार करावेल 'श्रुतस्थवीरोनु लखो अत्रे लेवाया छे.
सम्पादन कार्यमांमुनि प्रमोदसागरने जोडीमा जोडी दीधो छे. तेथी ते धीरे धीरे तैयार a. शुद्धिपत्रक तैयार करवानो परिश्रम गणिश्रीप्रबोध सागरजीए लीधो के.
बाकी जेओ जेओए मारा आ संपादन कार्यनी पूर्व भूमिकाथी अत्यार सुधीमां जे सहकार आप्यो छे ते बधाने अत्रे याद करु छु.
वाचक महाशयोने शुद्धिपत्रको उपयोग करवा नम्र विनंति छे.
नवरंगपुरा जैन उपाश्रय अमदाबाद नं० ६ सं० २०२५ जे०सु०८ २५-५-६९
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इत्यलम्
लि० भवदीय आगमोद्धारक उपसंपदाप्राप्त गणिकंचन
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