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१ मूल शब्दो विभक्तिवाला तेम विभक्ति वगरना अम बन्ने प्रकारना छे. तेथी ते जे लिंगनो शब्द होय ते शब्द तेवी तेवी विभक्तिथी ते ते लिंगमां समजी लेवो. जेमके - - अंकुर ( पृ० १,२ ) अंकृसयं ( पृ० १, २, ) इत्यादि (कोई एक शब्दकोषमां विभक्ति सहित शब्दो नथी तेवु पण प्राये अमारा जाणवामां छे.)
२ जो के शब्दो बधा एक जातना विभक्ति विगर अगर एक विभक्तिथी भेगा लेवा जोईए, परंतु आमां भिन्न भिन्न लेवाया छे. जेमके - अंकावर ( पृ० १, २) अंकावइओ ( पृ० १, १ ) इत्यादि. ३ वैकल्पिक शब्दोना विकल्पनो साचववा माटे अर्थात् तेवा प्रयोगोने साचवी राखवा माटे आमां भिन्न लेवाया छे. जेमके - अंकवडेंसए ( पृ० १, १ ), अंकावडिसए ( पृ० १, १ ) इत्यादि.
४ टीकाकार महाराजे जे शब्दोना प्रयोगो टीकामां कर्या छे ने ते शब्दो मूलमां नथी तेवा शब्दो प्राकृत जे कौसमां अपायुं छे ते प० पू० आगमोद्धारक गुरुदेवश्रीने पूछीने मुनिश्री सौभाग्यसागरजीए आपेलुं छे. वली तेवा शब्दो कोई बखत शरुआतमां अपाया छे अने कोई वखत संस्कृत शब्दनी पछी पण अपाया छे. तेनी बन्ने बाजुओ बनतां सुधी कौंस आप्यो छे. जेमके ( अंकील्ल ) नर्तकः ( पृ० १ १ ) अंगारः ( इंगाल ) ( पृ० , २ ) इत्यादि.
५ शरुआतमां तो शब्दोनां अर्थो अने शब्दोना संग्रहनी शैली नियमित रही नथी. पण जेम जेम अनुभव थतो गयो अने तेना अभ्यासमां वधारो थतो गयो तेम तेम पद्धतिमा सुधारे थतो गयो छे. छतां एटलु कहेवानी जरूर छे के पहेला भाग करतां बीजा भागमां पद्धती इत्यादिनो सुधारो मलेला अनुभव प्रमाणे करी शकीशु एवी आशा छे.
६ (१) अध्ययन, (२) विशेषनाम, (३) वनस्पतिना नामना अंगे तेनी साथे अर्थना रूपमा संस्कृतम अपायुं छे. जेमके ( १ ) अंडे - विपाकश्रुताद्यश्रुत० ( पृ० २, २ ), ( २ ) अंगारवई - अंगारवती संवेगोदाहरणे० ( पृ० २, २), (३) अंकोल्ल - वृक्ष विशेष: ( पृ० २ १ ) इत्यादि.
७ टीकाकारोए शब्दोना जे जगो पर अर्थ नथी कर्या तेवा शब्दो पण अत्रे अर्थ वगर अपाया है. जेमके ओल्ली ( पृ० २२४, २), उवट्टगा ( पृ० २०७२ ) इत्यादि, वली आ शब्दोना अर्थो जो कदाच मेलवी शकीशु तो परिशिष्टमां आपका विचार छे.
८ देशी शब्दोना अंगे 'देशीय' अगर 'देशी' एवं ' कौसमां लखायुं छे. अर्थात् टीकाकारे आपेलु कायम राख्यु ं छे, जेमके उत्तइउ ( देशी० ) - गर्वे ( पृ० १८७, १ )
९ चूर्णिकार महाराज चूर्णिनी अंदर प्राकृत अने संस्कृत एम बन्ने भाषाना प्रयोगो करे छे. तेथी चूर्णिना शब्दाना अर्थोमां प्राकृतना अने संस्कृतना बन्नेना प्रयोगो छे. परन्तु बहुधा तो प्रकृ ज होय छे.
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अ० से० श० मां एवा पण शब्दों छे के जे अभिधानराजेन्द्र के पाइयस महावोमां न पण होय.
अ० सै० श० नु' संपादन कार्य शरू थतां सुरतमां हता त्यां सुधी एक वखतनुं प्रुफ जोई
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