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माटे तो मेलववानी पण मुश्केलीओ ऊभी थई. आथी जो लखाण छापेलु मली जाय अने तेनो जो बोध अपाय तो ते हितावह निवडे. आ हेतुथी आगमो छपाववा अने तेनी वाचताओ आपवी एम प० पू० आगमोद्धारकगुरुदेव श्रीनी प्रेरणाथी नक्की थयु अने संपादननु कार्य अने वाचनानु कार्य आगमज्योतिर्धर, अप्रमादी, आगमोद्धारकश्रीने ज करवानु' थयु. आथी जेम जेम आगमो छपाता तेम तेम पाटण आदि स्थलोए 'वाचनाओ' अपाई अने ततो सेंकडो साधुसाध्वीओए लाभ लीधो.
आगमो रूपी सागर अने तेमां आवता विषयो पण ए सागरना उपसागरो जेवा छे. परंतु ते अखात रूपे छूटा छूटा पडया होय तो उपसागर रूपे देखाय, तेथी ते बधा प्रवाहो एकत्र करी जुदा जुदा उपसागरो बनाववा. आ मुद्दाए जेम आगमो छपाता गया तेम तेम वर्तमान श्रुतना ज्ञाता आगमोद्धारक गुरुदेव श्रीए – आगमोमां जुदा जुदा विषयो जगावनारा बावन (५२) अंको पडया अने 'शब्दकोष' माटेना शब्दो अंगे पण 'फूल' नु एक निशान कयु ए निशानो एवां हतां के—अमां कया शब्दथी क्यां सुधीनो भाग लेवानो छे ते जणाववा माटे आदिमां अने अन्तमां निशाननी साथै अङ्क मूकवामां आवतो हतो. ज्यारे आ कोषना शब्दोने अंगे फूलनु निशान मूकवामां आवतु हतु तेषां पण खूबी करवामां आवती हती के जो शब्द एक अक्षरनो होय तो एकनी नीचे, बेनो होय तो बे नी बच्चे, यावत् जेटला अक्षरनो होय तेना मध्यबिन्दुए निशान मूकवामां आवतु तु. आवी रीते शब्दोनी संकलना थई, आ बधा विषयो अने शब्दो लहिया द्वारा उतराईने एकत्रित करावता हता.
नाम – आ कोषनु' नाम 'श्रीअल्पपरिचित सैद्धान्तिक शब्दकोष' राखवामां आव्यु छे. कारण एले के आ कोषमा आगमोमां वपरायेला तमाम शब्दो नथी, परंतु जे शब्दनो परिचय अल्प छे, तेवा आगमगत – सैद्धान्तिक शब्दोनो आमां संग्रह करवामां अवेलो छे.
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