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________________ अंगसुत्ताणि शब्दसूची संति ३०८. नाया० १११।६, १८,२४,८६, १३४, २११११६. संतश्रान्त ] नाया०१।१।२४,१५६१।४।१२,१५, २०; उवा० १४, ६६; २।२१, २८. पण्हा० ४।७, ८; ११८७६; १९४५; १।१३।३१; १।१६।२८४; २३; १०।१५ १११८१४६,४६,५१. उवा२।२८,३४,४०,४५,७१५१, संड [षण्ड] भ० २।६६, ११२,११३. नाया० १११।२४; ५३; ८।४६, ४६. विवा० ११११५६, ६१, ११।२४; १।९।१३. उवा० ११५७; ७.१२ १।१०।१६ संडपट्ट [पण्डपट्ट] विवा० १।६।२३ संत [शान्त आ०८१८१;६।१।११.नाया० १॥५॥३५ संडासग | सदशक| सू० ११४१४२. नाया० ११८।१३०, संतकम्म [सत्कर्मन सम०२११२:२६।२; २७।५:२८२ १३३. विवा० ११६८ संतच्छण [सन्तक्षण] सू० १।५।१४ संडासतोंड [सन्दंशतुण्ड] पण्हा० ११२१ संतच्छित [सन्तक्षित] पण्हा ० १।२६ संडासय [संदंशक] सू० २।२।७७. भ०१६।६, ७.विवा० संतत सन्तप्त ] स. १३११३: १।४।२२ १६६५३ संतप्प [सं+तप्] -संतप्यई,सू० ११५॥३३ संडिल्ल [शाण्डिल्य ] ठा० ७।३१ संतर [सान्तर भ० ६७६से८५,१२०,१३१६५ संणद्ध [सन्नद्ध] पण्हा० ६।१ संतरित्तए [संतरीतुम् ] ठा० ५।६८ संणिक्खित्त [ सन्निक्षिप्त] आ० चू० १।४६. ठा० संतरुत्तर [सान्तरोत्तर] आ०८।५१ ५।२१, २२ संत भ० ६।१७३; ११११५२. नाया. संणिविट्ठ [संनिविष्ट] आ० चू० ३।५६ १।१।१७४.पण्हा० ३।२३ संणिवेस [ सन्निवेश] आ० चू० १५।२६ संताणगसन्तानक आ०चू०११४२,४३,८२,८३,१०२ संणिवेस [सं+नि+वेशय् ] –सणिवेसिज्जा, ठा० १३५,२।२,५७से ६१, ६८,६६, ३।१, ४,५; ५।२८ से ५१०२ ३०,६।२६ से ३१, ७।१०, २६ से ३१, ३३ से ३८, संणिहिय [संनिहित] आ० चू० ३।५५ ४० से ४५; ८।२, २२, २३, ६।१,२ संत सत् | आ० ४।१४.आ० चू० १।१,४ से७,१२से १८, संताणय [सन्तानक] आ० चू०१।२,५१,२।१, ३१,३२; २१से २५, ३६, ४१, ६३से८२,८५.८७से १०२,१०४. ५.३५; ६।३८; ७।१०; ८।१; ६।१, २; १०।२, ३, १०६से ११६, १२१,१२३,१२८; १३३से १३६, १४१से १४,२८ १४६, १५१, से१५४;२।३६से ४२,४४, ४८,५७स ६१, संतरिम [संतार्य आ० चु० ३।१४, २२, ३४से ३६ ६३, ६४; ३।६से ८; १५से १२, १४,१५, १७से २०, संताव [सन्ताप| पहा०३।२३ २२से २५, २८से ३०,४६से ४८, ६।४से१४,१६से१६; संतावणी [सन्तापनी ] सू० १।५।३३ ६।२१से २६,२६ से ३१, ४३,४६,५४से ५६; ७४२६से संति' [संति] आ० चू० १५१६५ ३१, ३३से ३८,४० से४५, ८।१६।१,२; १५।२६.सू० संति [शांति ] आ०१।१४६;२।६६,६।१०२.सू०१।३।८०; ११११३१,३२,३३; ११४।४८; १११२।२,८; २१११५०, ११।१६; १।११।११,३६, १।१३।१, १।१४।१६ २।२।१३, ३४,६४, २।३।२से १००; २।४।१७. ठा० २।१।६७, २।२।५१; २।५।३२.ठा० ३।५३०, ५३५; ३।३६४; ४।६२१. भ० ३१३३, १०२, ८।२३२; ५।१०।१०।२८.सम०२३।३,४,२४।१,४०।३,७५।३; ६।१७५;१११५६, १६०; १५।१०२.नाया० १११।९१, ६२,११०,१११, १४२;११५४५; ११७।३४; १।६।५; ८६४; ६०३६३२,प्र० २२२, २३६११. भ२०१६७. विवा०११५।१४, १५ १।१२।१६,२६, ३१, ३२,१११६।६, १६८, ३२७।१; १।१८।३८, ५६. उवा० ११७८, ७६. अंत० ३१७०, ७१.पण्हा०११२७, २०११; ३।१६. विवा० १३१५० १. बहुवचानान्त अव्ययम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016053
Book TitleAgam Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1980
Total Pages840
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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