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प्रासंगिक वक्तव्य
विश्वविख्यात अर्धमागधी प्राकृत महाकोश 'श्री अभिधान राजेन्द्र' की संरचना अपने आप में एक भगीरथ कार्य है। इस कोश का निर्माण करके विश्वपूज्य प्रातःस्मरणीय प्रभु श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने जैन जगत के साथ विश्वस्थ विद्वद् जगत पर महानतम उपकार किया है। विश्व में व्याप्त इस अलौकिक रचनाने गुरुदेव श्रीको विश्व पूज्यता प्रदान की है। श्रीमद का नाम आज विश्वपुरुषों की श्रेणी में गिना जाता है।
कोश के प्रथम संस्करण के संशोधक पूज्यपाद गुरुदेव श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने लिखा है
'अभिधान राजेन्द्र' सुकोश रचा, जैन जैनेतर सब ही का अँचा । विद्वानी जगजाहिर हुयी, यश पाया राजेन्द्र सूरिवरने ।।।
विश्व के विभिन्न देश-प्रदेशों के अनेक विद्वानोने इस काश को भूरि भूरि प्रशंसा की है । वे इस कोश का अपना महाप्राण मानते है ।
जितना बृहद्-कार्य यह कोश है: उतना ही भगीरथ कार्य इसका प्रकाशन भी है। यह विपुल अर्थसाध्य और अपार कष्ट-साध्य है। इसकी प्रथमावृति श्री जैन श्वेतांबर त्रिस्तुतिक संघ के विपुल अर्थ सहयोग से हमारे परम उपकारी साहित्य विशारद विद्याभूषण पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय भुपेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज एवं व्याख्यान वाचस्पति गभोर गणनायक पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमा विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के संशोधकत्व में श्री अभिधान राजेन्द्र कोश प्रचारक संस्थरतलाम से. प्रकाशित हुई थी।
समय बीतता गया और धीरे धीरे इसकी सब प्रतियाँ समाप्त हो गयी । ग्रंथ अप्राप्य हो गया, पर इसकी माँग बरावर बनी रही । बढती हुई माँगने हमें इस कोश की द्वितीयावृत्ति प्रकाशित करने की प्रेरणा दी; अतः अखिल भारतीय श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक संघ के आर्थिक सहयोग से अव यह दुर्लभ ग्रंथ पुनः प्रकाशित किया जा रहा है । यह महाकोश जैन संघ की अपूर्व धरोहर है और राष्ट्र की असाधारण निधि हैं।
इस द्वितीयावृत्ति के प्रकाशन के पुनीत अवसर पर हम पूज्यपाद तीर्थप्रभावक आचार्यदेव श्रीमद
य जयन्तसेनीवरजी महाराज जे। गरुदेव श्रीमद विजय यतीन्द्रसरीश्वरजी महाराज के प्रतिभा संपन्न शिष्य है और गुरू गच्छ के षष्ठम पट्टधर है - का स्मरण करना हम अपना परम कर्तव्य समझते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं । इस महाकोश की द्वितीयावृत्ति प्रकाशित करने की प्रेरणा और शक्ति हमें उन पूज्यपादश्री के द्वारा प्राप्त हुई है। उन्होंने ही हमारे मनोबल और संकल्प बल को बढावा दिया है।
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