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मर
से
सिरा
बिसाले
माणेच माई ग्रह अंबरस्था ॥ २४४ ॥ भाकरे कि पि
जय बाविड दा,
हा व
सिरंजन केसे ॥ १४५ ॥ देबि स दुरया
निवरेह जहा तहा मो दुखिती,
पुषो माग एवं
कुलश्या ॥ २४६ ॥ सुगर्थ,
म एस सत्यस्स विसस्ससम्भो ।
म एस अग्नी हिमा
म एस मंत्राय व तंतगो ॥ २४७ ॥ वे भी पिया ! महा सुट्टी भराया। एसपुर
णिधारिडं केला व पाणिस्थ ॥ २४८ ॥ हाम्रो से हरेस्समुद्रसाद महाम
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वयं भणित्ताय तयंतियाओ
गति उकडगस्स झति ॥ २४६ ॥ कुति बासं मुसलप्पमा,
सुष्मा जलपारयादि।
यजु
सुभीसणं कलकनतु ॥ २५० ॥ ते सरसं भच्हो तो से,
(१३०५) अभिधानराजडः |
परापनि पवित्रे बारह जोयणाई.
डिबार किसी पर पडे ॥ २५९ ॥ सातत्य राहितु गया.
परामु पवित्रे चम्मच तं पिउ
मणी ठवे अह मज्झभागे ॥ २५२ ॥ अहो पचम्म उचरिं इतं.
म मणि ओइयसनं । तत्य रांगो न भयं न बाही:
समेनजुत्तस्स मीलरक्स ॥ २५३ ॥ वाणि घनाणि वदंति तस्थ,
सबवाह लागाइ इति खियं ।
पुन्हा उयचेति साली,
म भन्दाले पषिसंति होया ॥ २५४ ॥ न तस्य राईम दिन दो
नक्शतमाला न गद्दा म सूरो । समुचयं सम्जयं पि जायं,
भरण ही सुसंति ॥ २५५ ॥ तंत्र पुराण सं.
सुम सतरतो ।
का बिट्टई तो अभिोगदेवा,
सिंतिया महाजु ॥ २५६ ॥ दीपारी,
सुक्कवहित महामहाए ।
हा पायेंपायें
विष्णुमाया दिदेवम्मा ॥ २५७ ॥ करेति एवं रसरस्स,
पेदिषु एवं इस रहस्
देवास संबद्धसुबद्धकच्छा ॥ २५८ ॥
मागायचारी,
समय मागकारपाये।
अहं एवं जह मोन किंवा
तुम्भेजिएस चक्की ॥ २५६ ॥ जानी महया भर विसाले, किसी भ
आणावा जस्म मरा राखि
कथं सदेवं मरहं समस्ये ॥ २६० ॥ सदावं जेण बसेस तुम्मे.
न याणा कीस वाली करेसा। एवं ए वी पडिहरेड',
एवं भणिजा जब किं न सिहं ॥ २६९ ॥ दियो समेड विप्पं
पासह जीवतोयं । अजय बिलं न भवेह पच्छा.
तुझेन पनि सम्यं ॥ २६२ ॥ गच्छेति भावाचामगावे,
पिजा पविचं । भांति ता गच्छ यहाय गता,
अम्गाई अग्वाइँ गहाय लिप्यं ॥ २६३ ॥ पिजं सारतरं हयाइ,
माणिक मुकामसिकाई ।
कथंजली सीसकयप्पामा.
उबेड सामि भरहं नरीसं ॥ २६४ ॥ [म] उसमा जयपालु
कुति बाई सरणाऽऽगयाण । जहा ऽऽगया तं पि गया भणितु,
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एवं सुरा तो कुलदेवया ते ॥ २६५ ॥ सहा करिना सलं बिया
पासम्म गंतुं भरहरुल रम्रो ।
समाहि नायमिणं बिराउ,
तुमं तु नेया भरहस्स अहो ॥ २६६ ॥ बकाइदप्यमुद्दा सामी,
रायणाय दिसो ।
तुम्हास अम्हे सरणं पवना,
भरड
कयाम पुछो करिए २६७ ॥
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