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भरह भभिधानराजेन्मः।
भरह हणेइ सिझं सयलं रिऊणं.
सुसत्यदेहो सुहपीणियंगो, परोप्परं साहिउ लद्धिो ।
अहा जहिच्छ विहरे पच्छा। तयस्थयं ते उ प्रयाण माणा,
सेमागया तस्थ मराऽसुरा वि, गया सठाणं सुमिणा ते उ ॥४६॥
नरा विनारी हरिसंवहंता॥६॥ सुहं कुमारस्स परंतु अस्थि ,
अहो अहो दाणामणं भणंति, मेरु ष सामी विहुनिष्पकंपो । मेरुख
मुंचति गंधोदयपुष्फमिस्सं। गंभीरमातोलियनीग्नाहो ,
उकिटुधारं दविणस्स झत्ति , अमुकिनो बसममत्तसंगो ॥ ५० ॥
चेले उखेवं तह चुन्नवासं। १२॥ मेहाणुगेहं प्रहरीयमाणो,
सयं च राया य पहाण सिट्टी, समागमो रायपहे विसाल।
समागो सेसजणो थि तत्थ । गवक्खचक्खू गयदेहमाहो,
भणंति एसो सुमिणस्स अत्यो, निरिक्खिनो सामि कर ति चित्तो ॥५१॥
पाराविभो सामि सवच्छराभो ।। ६३॥ दिट्टो कया वेरिसरूवधारी ,
तो जणो विम्हियमाणसो उ, अबोहईहा' गवसणाय ।
पुच्छे नायं कहमेयमेत्थ । एवं करंतस्स सुझाण जोगा,
कहेइ सव्वं भवमाइकिश्चं,
एयम्मि लोप पुण जाव जाश्रो ॥ ६४॥ जाईए जायं सरणं तहा उ॥५२॥ निमीलिमच्छो अह मुच्छयाए ,
जाइस्सराओ सयलं पिनायं,
धम्म अधम्मं जिणभिक्सदाणं। खणं तहा चिट्ठियमो परित्ता। चितेह देवो जर एज एत्थ,
एवं जरणा भत्तिभरावनम्मा, तो देमि भिक्खं प्रहपसणि जं ॥५३॥
दिज्जाहि भिक्खं जिण नायगस्स ॥६५॥
करेह पीढं रययामयं तु. जिणस्स भत्तिभरणिभरंगो,
भिखालया जस्थ ठिपण तत्थ । नागिंददेविंदनरिंदचंदं ।
सेयंसणामो कुमरो महप्पा, सोक्खाण ठाणं सयलाण प्रासी,
रम्म जिणाणं गयमोहएणं ॥६६॥ करेमि लोयाण तहा पवित्ति ॥ ५४॥ दंसेमि अन्नाणविमोहियाणं,
अंचित्तु तं भत्तिभरो घरेहिं, विगप्पकल्लोलसमाउलस्स।
पुप्फेहि गंधेहि य उत्तमेहि। सेयंससुद्धासयलीयमास्स ,
दिणे दिणे भुंजर काउमेयं, मरो अहिषखूपरसस्स कुभं ॥ ५५ ।।
पुच्छेद लोश्रो किमियं कहेह ॥६७॥
जिणो मए जत्थ विश्री रसेण , घे समीपे पगहेर जाब,
पारायिनी भत्तिसुनिम्भरेण । तिगुत्तिगुत्तो हरियोवउत्ती। गिहं गिणं प्रहरीयमाणो,
मा अक्कमही तु जणो जिणस्स , अमुच्छियप्पा सयणे धणे य॥५६॥
पाए परं पीढमिणं कयं मे ॥६॥ समागश्रो सामि कम कमेण,
एवं जिणो पारइ जत्ध जत्थ, - दटुंजिणं किरिहरिसं नरम्मि।
लोगो वि पार्ट पगरेइ तत्थ । विवढमाणोसियरोमकृयो,
आइश्चपीढं ति परंपराए, माणदपिंदूजलकिन्नदिट्टी ॥ ५७ ॥
खयं गयं कालबसेण पच्छा ॥ ६॥ सग्गं चमत्तं च श्रयाणंमाणे,
जहासुहं हिंडउ गामदेसे , वंदितु भूमीकयपंचमंगो।
सहस्समेवं वरिसाण पुग्नं ।
अश्रो परं घाइकम्म खवेद, भणार सामी! रसमेसणीयं, गिहाहि तारेहि भवन्नवारो।। ५८ ॥
पावेद नाणं जिण केवलं तु ॥ ७॥
नरहिं सामिस्स पउत्तिहलं, सभी पसारे जिण सुपाणी,
निउत्तएहिं भरद्वाहिवस्स । विसुद्धलेसे सुविसुद्धबुद्धी।
नाणं पहाणं कहियं व जायं, पसस्थझाणोऽथ झड त्ति देइ .
...माऊदपालण विचकवत्ती॥ ७१॥ पाणंदसंदोहमुवागमो सो ॥ ५ ॥
उग्घोसमाइलिय इट्ठसिद्धी, धनातिधनं कय किञ्चयं ति ,
अद्धच्चुयं किं पि हि संतरंतो। जयम्मि अप्पाण वि मन्नमाणो। सामी वि संबच्छरपारणम्मि,
* सुदुंदुहीनो गगणंगणम्मि, पारितु तं इक्खुरसं मणुनं ॥ ६॥
समा कुणंती हरिसं बहता ॥ ६१॥
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