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- इति -
श्रीमत्सौधर्म बृहत्तपागच्छीय कलिकाल सर्व कल्प- सर्वतन्त्र स्वतन्त्र जैन श्वेताम्बराचार्य श्री श्री १००८ जट्टारकश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरमहाराज विरचिते
शब्दसङ्कलनात्मके " श्री अभिधानराजेन्द्रकोषे "
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चतुर्थो भागः समाप्तः ।
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