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६-'अणेगंतवाय' शब्द पर स्यादवाद का स्वरूप, एकान्तवादियों को दोष,अनेकान्तवादियों के मत का प्रदर्शन,अनेकान्तवाद के प्रत्यक्तरूप से दिखाई देते हए भी उसको तिरस्कार करने वालों की उन्मत्तता,एकान्तरूप से उत्पत्ति अथवा नाश मानने में दोष, हरएक वस्तु के अनन्तधर्मात्मक होने में प्रमाण, वस्तु की एकान्तसत्ता माननेवाले सांरूपमत का खएहन इत्यादि विषय उत्तमोत्तम दिखाये गये हैं।
७'अमाउत्यिय' शब्द पर एक जीव एक समय में दो आयुष्य करता है कि नहीं? इसपर अन्ययथिकों के साथ विवाद, अदत्तादानादि क्रिया के विषय में विवाद, एक समय में एक जीव के दो किया करने में विवाद, कल्याणकारी शील है या श्रुत है ? इसपर अम्ययूथिकों के साथ विवाद, और अन्ययूधिकों के साथ गोचरी का निषेध, तथा अन्यायकों को भोजन देने का निषध, एवं उनके साथ विचारनूमि या विहारमि में जाने का निपेप आदि विषय आवश्यकीय है।
• अदत्तादाण' शब्द पर अदत्तादान के नाम, अदचादान का स्वरूप, अदचादान का कर्ता, और भदचादान का फल इत्यादि विषय उपकारी हैं।
ए'अगकुमार' शब्द पर आर्षककुमार की कथा, रागद्वेषरहित के भाषण करने में दोषाजाव, बीजादि के उ. पनोक्का भमण ( साधु ) नहीं कहे जाते, समवसरणादि के उपभोग करने पर भी अर्हन नगवान् के कर्मबन्ध न होने का प्रतिपादन, केवल नावाकिही को माननेवाले बौखों का खयमन, विना हिंसा किये हुए भी मांस खाने का निषेध श्रादि विषय प्रदर्शित किये गये हैं।
१० ' प्राधिगरण ' शब्द पर कलह करने का निषेध, उत्पन्न हुए कलह को शान्त करने की प्राइा, कलह उत्पत्ति के कारण, कलह करके दूसरे गण में जाने का निषेध, गृहस्थ के साथ कलह उत्पन्न होजाने पर उसको बिना शान्त किये पिएमादि ग्रहण करने का निषेध इत्यादि विषय स्मरण रखने के योग्य हैं।
११ 'अप्पाबद्य' शब्द पर अल्पबहुत्व के चारजेद,पृथ्वीकायादिकों के जघन्याद्यवगाहना से अल्पबदुत्व.आहारक और अनाहारक जीवों का अल्पबदुत्व, सेन्धियों का परस्पर अस्पबहुत्व, क्रोधादि कपायों का अल्पबहुत्व, किम क्षेत्र में जीव थोमे है और किसमें बहत है इसका निरूपण, जीव और पुलों का अध्पबहुत्व, तथा शानियों का अल्पबदुत्व आदि अनेक विषय हैं।
१५'अमावसा' शब्द पर एक वर्ष में द्वादश अमावास्याओं का निरूपण, तथा उनके नक्षत्रों का योग और उनके कुन्न, एवं कितने मुहूर्तों के जानेपर अमावास्या के बाद पूर्णमासी और पूर्णमासी के बाद अमावास्या आती है इत्यादि विषय है। और 'अयण' शब्द पर अयन का परिमाण, करण का निरूपण, चन्छायण के परिज्ञान में करण आदि विषय रमणीय हैं। १३ ' अहिंसा' शब्द पर अहिंसा का स्वरूपनिरूपण, अहिंसा व्रत का लक्षण, जिनको यह मिली है और जिन्होंने इसको ग्रहण की है उनका वर्णन, अहिंसा पानन में उधत पुरुषों का कर्तव्य, अहिंसा की पांच भावनाएँ. माणीमात्र की हिंसा करने का निषेध, वैदिक ( याज्ञिक) हिंसा पर विचार, पाणी के न मारने के कारण. जैनों के ममान अन्य मत में अहिंसा के अभाव का निरूपण, अन्य मत में अहिंसा को मोक्ष की कारणता मुख्य न ( गौण ) होना, एकान्त नित्य अथवा एकान्त अनित्य आत्मा के मानने वालों के मत में अहिंसा का व्यर्थ हो जाना, आत्मा के परिणामी होने पर जी हिंसा में अविरोध का प्रतिपादन, आत्मा के नित्यानित्यत्व और देह से जिन्नाभिन्नत्व होने में प्रमाण, तथा प्रात्मा के शरीरावच्चिन्न होने में गुण आदि विषय ध्यान देने के योग्य हैं।
प्रथम भाग में जिन जिन शब्दों पर कथा या उपकथायें आई हैं उनको नामावली'अइमुंतय "अनजका " अंगारमहग' ' अंजू' 'अंम' 'अंबर' 'अक्कर कीर्तिचन्छ नरचन्ध की] — अक्खयप्या" प्रकावुद्द' 'अगमदत्त''अगहिट्यगराय''अचंकारियभट्टा''अचल" अजिअदेव"अज्जगंग' 'अज्जचंदणा'' अज्जमंगु 'अज्जमणगज्जरक्ख' 'अज्जरक्खिय' 'प्रज्जव' (अहर्षिकथा) 'अज्जवहर' 'अज्जुमणग' अहण' 'अहावय 'अहिअगाम' 'अमबि ''अणिस्सि प्रोवहाण''अणीयस''अणुबेखंघर'' आणुन्नमवेस'' अपायया 'अलियानत्त'' अत्तदोसोवसंहार' · अत्थकुसन्न' 'अगकुमार' 'अप्पमाय ' ' अव्वुय' 'अन्न 'अनयकुमार ''अभयदेव '' अमरदत्त '' अर' 'अरहाय' 'अरिहनेमि' 'अलोभया' “अवंतिसुकुमार 'असढ''असाववोहितित्थ'अहिउत्ता' अहिणंदण 'अादि शब्दों पर कथायें इष्टव्य हैं।
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