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१३ –चौदह योग किसमें ? तिर्यंच में -आहारक, आहारकमिश्र को छोड़कर ।
१४-चौदह योग किसमें ? मनयोगी में कार्मण को छोड़कर ।
१५-पन्द्रह योग किसमें ? समुच्चय जीव में ।
कहा है -
जोगमग्गणावि ओदइया, णामकम्मस्स उदीरणोदयजणिदत्तादो ।
-षट् खण्ड० सू ४ । १ । ६६ । पृ० ३१६
योग मार्गणा भी औदयिक है, क्योंकि वह नाम कर्म की उदीरणा व उदय से उत्पन्न होती है।
भगवान महावीर का निर्वाण हस्तिपाल राजा की रथशाला में नहीं परन्तु पुरानी शुल्कशाला में हुआ था। तपोबल से कुलबालक मुनि इसलिए कहलाया कि वह नदी के किनारे के बदलने व मोड़ने में समर्थ हुआ। कोणिक की वेश्या ने उसे भ्रष्ट कर वैशाली के अभंग रहने का कारण तत्र स्थित मुनिसुव्रत स्वामी का स्तूप था जिसे तोड़ने पर वैशाली का पतन हुआ। यह कथा बौद्ध साहित्य से भी समर्थित है ।
वैशाली पति चेटक-हल्ल-विहल्ल का नाना था। प्रयोगपरिणत पुद्गल (पभोगपरिणद पोग्गल )
प्रयोगपरिणता:-जीवव्यापारेण तथाविधपरिणतिमुपनीताः । जीव की क्रियाओं द्वारा पुद्गल के अपने स्वरूप से अन्य स्वरूप में परिणत हो जाने को प्रयोगपरिणत पुद्गल कहते हैं।
-स्था० स्था ३ । उ ३ । सू १८६ । टीका इरियावहकम्म ( ईयोपथकर्म )
जं तमीरियावहकम्मं णाम । २३ ईर्या योगः, सः पन्था मार्गः हेतुः यस्य कर्मणः तदीर्यापथकर्म । जोगणिमित्तणेव णं वज्झइ तमीरियावहकम्मं ति भणिदं होदि । तं छदुमस्थवीयरायाणं सजोगिकेवलीणं वा तं सव्वमीरियावह कम्म णाम । २४
-षट् ० खण्ड ० ५। ४ । सू २४ । पु १३ । पृ० ४७, ४८ ईया का अर्थ योग है। वह जिस कामण शरीर का पथ, मार्ग हेतु है वह ईर्यापथकर्म कहलाता है। योग मात्र के कारण जो कर्म बंधता है वह ईर्यापथ कर्म है। वह छद्मस्थ वीतरागों के और सयोगि केवलियों के होता है वह सब ईर्या पथ कर्म है।
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