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( ३३६ ) २२ सयोगी अनन्तरोपपन्नक नारकी और कर्म-बंध
सलेस्से णं भंते ! अणंतरोववण्णए णेरइए पावं कम्मं कि बंधी-पुच्छा।
गोयमा! पढम-बिइया भंगा। एवं खलु सव्वत्थ-पढम-बिइया भंगा, णवरं सम्मामिच्छत्तं मणजोगो वइजोगो य ण पुच्छिज्जइ एवं जाव थणियकुमाराणं।
- भग० श० २६ । उ २ । सू २ अनंतरोपपन्नक सयोगी-काययोगी नारकी प्रथम द्वितीय भंग से पापवम का बंध करता है । इस अवस्था में सम्यग्मिथ्यात्व मनोयोग-वचनयोग नहीं होता है ।
इसी प्रकार असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त जानना ।
नोट-जिसकी उत्पत्ति का प्रथम समय है उसे अनन्तरोपपन्नक कहते हैं । •२३ सयोगी अनंतरोपपन्नक पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रिय जीव और पापकर्म
का बंध एगिदियाणं सव्वत्थ पढम-बिइया भंगा।
-भग० श० २६ । उ २ । सू २ सयोगी-काययोगी अनंरोपपनक एकेन्द्रिय-पृथ्वीकायिक आदि प्रथम-द्वितीय विकल्प से पापकर्म का बंध करते हैं । .२४ सयोगी अनंतरोपपन्नक द्वीन्द्रिय जीव आदि तथा पाप कर्म का बंध बेइंदिय-तेइ दिए-चरिदियाणं वयजोगो ण भण्णइ ।
-भग श० २६ । उ २ । सू २ ___ सयोगी-काययोगी अनंतरोपपन्नक द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय जीव प्रथय-द्वितीय भंग से पाप कर्म का बंध करता है इसका अवस्था में द्वीन्द्रिय के वचन योग नहीं होता है। •२५ सयोगी अनंतरोपपत्रक पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिक जीव तथा पापकर्म बंध
पाँचदिय-तिरिक्ख-जोणियाणं पि सम्मामिच्छत्तं, ओहिणाणं, विभंगणाणं, मणजोगो-वयजोगो-एयाणि पंच पयाणि ण भण्णं ति।
-भग० श० २६ । उ २ । सू २ सयोगी-काययोगी अनंतरोपपन्नक तिर्यंच पंचेन्द्रिय योनिक प्रथम-द्वितीय भंग से पापकर्म बांधता है। मनोयोग-वचनयोगी इस अवस्था में नयीं होता है अतः इनकी पृच्छा नहीं करनी चाहिए।
नोट-अनंतरोपपन्नक तिर्यच पंचेन्द्रिय में सम्यगमिथ्यादृष्टि, अवधिज्ञान, विचंगज्ञानमनोयोग व वचनयोग नहीं होते हैं।
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