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असत्य वचन योग के दस भेद हैं
१. क्रोधनिश्रित
२. माननिश्रित
३. मायानिश्रित
४. लोभनिश्रित
५. प्रेयनिश्रित
उदय वचव योग के दस भेद हैं
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१. उत्पन्नमिश्रित ४. जीवमिश्रित ७. अनंतमिश्रित १०. अद्धाअद्धमिश्रित
२. विगतमिश्रित ५. अजीवमिश्रित ८ परीतमिश्रित
३. उत्पन्नविगतमिश्रित ६. जीव अजीवमिश्रित ९. अद्धामिश्रित
६. द्वेषनिश्रित
७. हास्यनिश्रित
८. भयनिश्रित
९. आख्यायिकीनिश्रित
१०. उपघातनिश्रित
सत्य वचन योग के भी जनपद सत्यादि दस भेद है । व्यवहार वचन योग के भी दस भेद है ।
शुक्लध्यान में एक योग से दूसरे योग पर परिवर्तन भी किया जाता है । शुक्लध्यान का एक भेद पृथक्त्व - वितर्क - सविचार है । इस ध्यान में परिवर्तन होता है । के प्रथम दो भेदों में तीनों योग होते हैं ।
शुक्लध्यान
अनाहारक अवस्था में केवल कार्मण काययोग होता है । कार्मण काययोग को बाद देकर चवदह योग होते हैं ।
दण्ड- द्रव्य और भाव के भेद से दो प्रकार का होता है । द्रव्यत: लाठी आदि को दण्ड कहा जाता है तथा भावतः दुष्ट कर्मों में फंसा हुआ मन-दण्ड है । यह मन- दण्ड अशुभ योग के कारण होता है ।
कुछ देशों में जो शब्द जिस अर्थ में रूढ़ होता है, देशान्तरों में भी यदि वह शब्द उसी अर्थ में प्रयुक्त होता है तो वह जनपद सत्य कहलाता है ।
सयोगी तामली तापस ने सम्यग्दृष्टि जीव ऐसी तपस्या मिथ्यादृष्टि था ।
आहारक अवस्था में
प आदि कर्म के द्वारा अर्हदादि के विकल्प स्वरूप स्थापित किया जाता है उसे स्थापना सत्य कहते हैं - यथा अजिन को जिन के रूप में तथा अनाचार्य को आचार्य के रूप में ख्यात करना ।
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जो लोकसम्मत भी हो तथा अभिधानार्थ द्वारा सत्य भी हो उसे सम्मत सत्य कहते हैं । पंकज शब्द अरविन्द अर्थात् कमल के ही अर्थ में रूढ़ माना जाता है अतः वह सम्मत सत्य है ।
६० हजार वर्ष तक बेले- बेले की तपस्या की । यदि करे तो सात जीव मोक्ष जा सकते हैं। लेकिन वह
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