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( ३२२ ) ६-अहवा तिरिक्खजोणिएसु य रइएसु य देवेसु य होज्जा। ७-अहवा तिरिक्खजोणिएसु य मणुस्सेसु य देवेसु य होज्जा। -अहवा तिरिक्खजोणिएसु य रइएसु य मणुस्सेसु य देवेसु होज्जा )।x x x एवं जाव अणागारो वउत्ता।
-भग० श०२८ । उ १ । सू २
सयोगी, मनोयोगी-वचनयोगी और काययोगी जीव ने किस गति में पाप कर्मों का समर्जन (ग्रहण ) किया था और किस गति में आचरण किया था ?
हे गौतम ! (१) सभी सयोगी जीव यावत् काययोगी जीव तिर्यंच गति में थे। (२) अथवा सभी सयोगी जीव तिर्यंच-योनि और नरक-योनि में थे। (३) अथवा सभी सयोगी जीव लियंच योनि और मनुष्य योनि में थे। (४) अथवा सभी सयोगी जीव तिर्यंच योनि और देव में थे। (५) अथवा सभी सयोगी जीव तिर्यंच योनि, नरयिक और मनुष्य में थे। (६) अथवा सभी सयोगी जीव तिर्यंच योनि और नैरयिक और देव थे । (७) अथवा सभी सयोगी जीव तिर्यंच योनि, मनुष्य और देव थे। (८) अथवा सभी सयोगी जीव तिर्यच योनि, नैरयिक, मनुष्य और देव थे। उस-उस गति में सयोगी यावत् काययोगी जीवों ने पाप-कर्म का समर्जन और समाचरण किया था।
नोट-पाप कर्मों का समर्जन और समाचरण अर्थात् पाप-कर्म का हेतु भूत पापक्रिया का आचरण । जीव ने पाप-कर्म के समाचरण से पाप-कर्म का उपार्जन किया था। अथवा समर्जन और समाचरण शब्द पर्यायवाची है। अथवा दोनों शब्द एक ही अर्थ के द्योतक हैं।
.५७.१ सयोगी तारकी आदि के दंडक के जीव और पाप कर्मों का समन
समाचरण रइया णं भंते ! पावं कम्मं कहिं समज्जिणिसु, कहिं समारसु ।
गोयमा ! सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्ज त्ति-एवं चेव अट्ठ भंगा भाणियब्धा । एवं सव्वत्थ अट्ठ भंगा, एवं जाव अणागारोवउत्ता वि। एवं जाव वैमाणियाणं।
-भग० श. २८ । उ १ । सू ३
सभी सयोगी नारकी तिर्यंच योनिक थे इत्यादि पूर्ववत् आठ भंग । (पाप कर्म का समर्जन-समाचरण की अपेक्षा ) यावत् वैमानिक देवों तक कहना।
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