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प्ररूपक नंगमनय की विवक्षा से भात पर्याय रूप परिणमन करने वाले द्रव्य की अपेक्षा 'भात पकता है' इस वचन की सत्यता सिद्ध है।
८-सम्भावना सत्य-असंभव के परिहारपूर्वक वस्तु के धर्म का विधान करने वाली संभावना के द्वारा जो वचन व्यवहार होता है वह संभावना सत्य है। जैसे इन्द्र जम्बूद्वीप को पलटने में समर्थ है। यहाँ जम्बूद्वीप को पलटने की शक्ति की असंभवता का परिहार करते हुए उस शक्ति के विधान का वचन पलटने की क्रिया से निरपेक्ष होते हुए सत्य है। जैसे यह कहना कि बीज में अंकुर को उत्पन्न करने की शक्ति है। इन्द्र में जम्बूद्वीप को पलटने की शक्ति असंभव है। इस असंभवता का परिहार करके इन्द्र में पलटन रूप धर्म के अस्तित्व की संभावना नियम से उस क्रिया की अपेक्षा नहीं रखती। अर्थात् इन्द्र जम्बूद्वीप को पलटदे तभी इन्द्र जम्बूद्वीप को पलट सकता है यह कहा जा सकता है ऐसी बात नहीं है। क्रिया तो वाह्य कारण समूह के व्यापार से उत्पन्न होती है ।
९-भाव सत्य-अतीन्द्रिय पदार्थों के प्रवचन में कहे गये विधि-निषेध के संकल्प रूप परिणाम को भाव कहते हैं। उसके आश्रित वचन भाव सत्य है। जैसे सूखा हुआ, पकाया हुआ, छिन्न-भिन्न किया हुआ, खटाई या नमक मिलाया हुआ तथा जला हुआ द्रव्य प्रासुक है। अतः उसके सेवन में पापबंध नहीं है। इस प्रकार के पाप के त्याग रूप वचन भाव सत्य है। समस्त अतीन्द्रिय पदार्थों के ज्ञाता के द्वारा उपदिष्ट आगम सत्य ही होता है अतः उसके आधार से जो संकल्पपूर्वक वचन है वह सत्य है।
१०-उपमा सत्य-प्रसिद्ध अर्थ के साथ सादृश्य बतलाने वाला वचन उपमा सत्य है। यथा-पल्योपम । पल्य अर्थात अनाज भरने का खत्ता, उनके साथ उपमा अर्थात् सदृश्यता जिसकी है, क्योंकि पल्य में रोमखंड भरे जाते हैं, उसकी संख्या को पल्योपम कहते हैं।
प्रज्ञापना पद १३ के टीकाकार ने कहा है--"लेश्या परिणाम योग का परिणाम रूप है। क्योंकि "योग परिणामो लेश्या" ऐसा शास्त्र का वचन है। अत: लेश्या परिणाम के बाद योग परिणाम कहा है। संसारी जीवों को योग का परिणाम होने के बाद उपयोग का परिणाम होता है अतः योग परिणाम के बाद उपयोग परिणाम कहा है।
अनेक प्रकार के परिणाम वाले जीव जिसमें हो उसे 'समवसरण' कहते हैं, अर्थात् भिन्न-भिन्न मतों एवं दर्शनों को 'समवसरण' कहते हैं। समवसरण के चार भेद हैं । यथा-क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी।
यहाँ क्रियावादी आस्तिक दर्शन है । कर्ता के बिना क्रिया संभव नहीं है। इसलिए 'क्रिया का कर्ता जो है, वह आत्मा है। इस प्रकार आत्मा के अस्तित्श को मानने वाले क्रियावादी हैं व क्रियावादी सम्यग्दृष्टि होते हैं बाकी तीन मतवाद -अक्रियावादी, विनयवादी व अज्ञानवादी मिथ्यादृष्टि होते हैं ।
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