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वह तद्भवस्थ होने के द्वितीय समय में जघन्य योगवाले के होता है। वह जघन्य व उत्वर्ष से एक समय होता है ।
सूक्ष्म व बादर निवृत्त्यपर्याप्तकों के वे जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग है। (मूल में) वह तद्भवस्थ होने के द्वितीय समय में वर्तमान जघन्य योगवाले के होता है। वह जघन्य व उत्कृष्ट से एक समय होता है ।
.५० समय व संख्या की अपेक्षा सयोगी जीव की उत्पत्ति-मरण-अवस्थिति.१ नरक पृथ्वियों में
गमक १-इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढणीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता
गोयमा! तीसं निरयावास सयसहस्सा पण्णत्ता । ते णं भंते ! कि संखेज्जवित्थडा? असखेज्जवित्थडा? गोयमा! संखेज्जवित्थडा वि, असंखेज्जवित्थडा वि।
इमीसे णं भंते ! रयणप्पयाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु नरएसु एगसमएणंx x x।३५-केवतिया मणजोगी उववज्जति ? ३६-केवतिया वयजोगी उववज्जति ? ३७–केवतिया कायजोगी उववज्जति x x x।
गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं x x x ? मणजोगी न उववज्जति, एवं वइजोगी वि। जइण्णण एको वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेण संखेज्जा कायजोगी उववज्जति।
-भग० श• १३ । उ १ । सू २, ३, ४
गमक १-नरक पृथ्वियाँ सात कही है-यथा-रत्नप्रभा, यावत् अधः सप्तम
पृथ्वी ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नरकावास कहे गये हैं। वे नरकावास संख्येयविस्तृत भी है और असंख्येय-विस्तृत भी है ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्येय ( योजन ) विस्तृत नरकावासों में एक समय में कितने मनोयोगी जीव उत्पन्न होते हैं, कितने बचन योगी जीव उत्पन्न होते हैं, कितने काययोगी जीव उत्पन्न होते हैं।
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