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पाँच मनोयोगी और पांच वचनयोगी जीवों में औदारिक, वैक्रियिक और आहारक परिशातनकृति तथा औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तेजस व कार्मणशरीर की संघातनपरिशातनकृति युक्त जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ?
उक्त जीव लोक के असंख्यातवें भाग में रहते हैं । कायजोगी जीवों की प्ररूपणा ओघ के समान है । विशेष इतना है कि इनमें तेजस व कार्मणशरीर की परिशातनकृति नहीं होती । औदारिककाययोगी जीवों में औदारिक, तैजस व कार्मणशरीर की संघातनपरिशातनकृति युक्त जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ।
उक्त जीव सब लोक में रहते हैं ।
औदारिककाययोगियों में वैक्रियिकशरीर के तीन पद तथा औदारिक व आहारकशरीर की परिशातनकृति युक्त जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं । उक्त जीव लोक के असंख्यातवें भाग में रहते हैं । औदारिकमिश्रकाययोगियों की प्ररूपणा सूक्ष्म एकेन्द्रिय के समान है । वैक्रियिककाययोगियों में अपने दो पद युक्त जीव लोक के असंख्मातवें भाग में रहते हैं । वैऋियिक मिश्र काययोगियों की प्ररूपणा देवों के समान है । आहारककाययोगियों में औदारिकशरीर की परिशातनकृति और आहारक, तेजस व कार्मणशरीर की संघातन-परिशातनकृति, इस प्रकार तीन पद, तथा आहारकमिश्रकाययोगियों में -- इन तीन पदों के साथ आहारकशरीर की संघातनकृति, इस प्रकार चार पद युक्त जीव असंख्यातवें भाग में रहते हैं । कार्मणकाययोगियों में औदारिकशरीर की परिशातनकृति युक्त जीवों की प्ररूपणा केवली जीवों के समान है। इनमें तेजस व कार्मणशरीर की संघातनपरिशातनकृति युक्त जीव सब लोक में रहते हैं ।
• ११ करणानुगम में संचित योगी जीवों की संघातनकृति आदि कृति करते हुए कितनी संख्या
पंचमणजो गि- पंचवचिजोगीणं ओरालिय- वेडव्वियपरिसादण संघावणपरिसादणकदी तेजा - कम्मइयसंघादण परिसादणकदी केत्तिया ? असंखेज्जा । आहारदोपदा संखेज्जा । कायजोगी ओघं । णवरि तेजा - कम्मइयपरिसादणं णत्थि । [ ओरालियकायजोगीसु ] ओरालियसंघादण - [ संघादण ] परिसादण - कदी तेजा - कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी केत्तिया ? अनंता । ओरालियसादकी वेव्वियतिष्णिपदा असखेज्जा । आहारपरिसावणकदी संखेज्जा । ओरालिय मिस्सकायजोगीणं सुहुमेइ दियभंगो। वेउव्वियकाय जोगीसु दोण्णिपदा असंखेज्जा । एवं वेउव्वियमिस्सकायजोगीणं । णवरि संघादणकदी अस्थि । आहारकायजोगी आहारमिस्सकायजोगीणं तिणि चत्तारिपदा संखेज्जा । कम्मइयकायजोगीणं तेजा - कम्मइयसंघादण परिसावणकदी केसिया ? अनंता । ओरालियपरि सादणकदी । संखेज्जा ।
- षट्० खण्ड ० ४ । १ । सू ७१ । पु ९ । पृष्ठ० ३६१ । २
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