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( २५६ ) ओघभंगो हवदि । एदेसिमवहारकालो वुच्चदे। तं जहा-ओरालियकायजोगिसासणसम्माइटिअवहारकालमावलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे ओरालियमिस्सकायजोगिसासणमम्माइट्ठिअवहारकालो होदि। कुदो ? देव-जेर इएहितो तिरिक्खमणुस्सेसु उप्पज्जमाणरासिणो पुवट्टिदरासिस्स असंखेज्जविभागतादो। असंजदसम्माइट्ठी सजोगिकेवली दव्वपमाणेण केवडिया, संखेज्जा।
-षट्० खण्ड० १ । २ । सू ११४ । पु ३ । पृष्ठ० ३९७ टीका-देव-णेरइयसम्माइट्ठिणो मणुसे सु उव्वज्जमाणा संखेज्जा चेव लभंति, मणुसपज्जत्तरासिस्स अण्णहा असंखेज्जत्तप्पसंगा। ओरालियमिस्सकायजोगम्हि सुत्ताविरुद्ध ण आइरिओवएसेण सजोगिकेवलिणो चत्तालीसं हवं ति । तं जहा-कवाडे आरुहंता बीस २०, ओदरंता वीसेत्ति २० ।
औदारिकमिश्रकाययोगियों में मिथ्यादृष्टि जीव ओघ प्ररुपणा के समान है ।
यह सूत्र भी सुगम है। अब यहाँ ध्र व राशि का कथन करते हैं-पहले जो औदारिककाययोगियों की ध्रुव राशि कह आये हैं उसे संख्यात से गुणित करने पर औदारिकमिश्रकाययोगियों की ध्रुव राशि होती है। क्योंकि सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त राशि पर्याप्त राशि के संख्यातवें भाग है। उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है-तिर्यच और मनुष्यों के अपर्याप्तकाल से पर्याप्तकाल संख्यातगुणा है। पुनः उन कालों के जोड़ से तिथंच राशि को खंडित करके जो प्राप्त हो उसे अपर्याप्त काल से गुणित कर देने पर औदारिकमिश्रकाययोगी राशि होती है। इन औदारिकमिश्रकाययोगी जीव राशि को औदारिक काययोग के काल के गुणकार से गुणित कर देने पर औदारिक काययोग राशि होती है। अतः औदारिक काययोगी जीव राशि से औदारिकमिश्र काययोगी जीव राशि संख्यातगुणी हीन है, यह सिद्ध हुआ।
औदारिकमिश्रकाययोगी सासादन-सम्यग्दृष्टि जीव सामान्य प्ररुपणा के समान है।
चकि तिर्यंच और मनुष्यों में उत्पन्न होते हुए सासादन सम्यग्दृष्टि देव और नारकी पल्योपम के असंख्यातवें भाग पाये जाते हैं। इसलिये औदारि कमिश्रकाययोगी सासादन सम्यगदष्टियों के प्रमाण की प्ररुपणा सामान्य प्ररुपणा के समान होती है। अब इनका अवहारकाल कहते हैं। इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
औदारिक काययोगी सासादन सम्यगदृष्टियों के अवहारकाल को आवली के असंख्यातवें भाग से गुणित करने पर औदारिकमिश्रकाययोगी सासादन सम्यगदृष्टियों का अवहारकाल होता है। क्योंकि देव और नारकियों में से तिर्यंच और मनुष्यों में उत्पन्न होने वाली राशियां पहले स्थित राशि के असंख्यातवें भागमात्र होती है।
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