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________________ ( २५० ) होदि। तम्हि संखेज्जरवेहि गुणिदे मणजोगिअवहारकालो होदि। तं हि संखेज्जरवेहि खंडिय लद्ध तम्हि चेव पक्खित्ते असच्चमोसमणजोगिअवहारकालो होदि। तम्हि संखेज्जरवेहि गुणिदे सच्चमोसमणजोगिअवहारकालो होदि। तम्हि सखेज्जरवेहि गुणिदे मोसमणजोगिअवहारकालो होदि। तम्हि संखेज्जरुवेहि गुणिदे सच्चमोसमणजोगिअवहारकालो होदि। तम्हि संखेज्ज रुवेहि गुणिदे वेउनियमिस्सअवहारकालो होदि। किं कारणं ? जेण अंतोमुत्तमेस वेविय मिस्सुवक्कमणकालादो संखेज्जवस्सा उवदेवाणमुवक्कमणकालो संखेज्जगुणो तेण देवाणं संखेज्जदिभागो वेउव्वियमिस्सरासी होदि। होतो वि सच्चमणरासिस्स संखेज्जदिभागो। कुदो ? सच्चमणजोगद्धोवट्टिदसयलद्धासमासअंतोमुत्तमेत्तद्वाए आवलियगुणगारसंखेज्जरवेहितो वेउध्वियमिस्सद्धोवट्टिदसंखेज्जवर सेसु संखेज्जगुणरुवोवलंभादो। ___ सासादन सम्यग्दृष्टि आदि शेष गुणस्थानवर्ती वचनयोगी और अनुभय वचनयोगी जीव सासादन सम्यग्दृष्टि आदि मनोयोगि-राशि के समान है। जिस प्रकार मनोयोगी जीव-राशि ओघसासादनसम्यग्दृष्टि आदि के संख्यातवें भाग है, उसी प्रकार वचनयोगियों और अनुभय वचनयोगियों में सासादनसम्यगदृष्टि आदि जीव-राशि ओघ सासादनसम्यग्दृष्टि आदि के संख्यातवें भाग है। शेष कथन सुगम है । अब अल्पबहुत्व के बल से पूर्वोत्त सूत्रों में कथित राशियों के अपहार काल कहे जाते हैं यथा-संख्यात से सूच्यंगुल के भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसके वगित करने पर बचनयोगियों का अवहारकाल होता है। इससे संख्यात् से खंडित करके जो लब्ध आवे उसे इसी वचनयोगियों के अवहारकाल में मिला देने पर अनुभय वचनयोगियों का अवहारकाल होता है। इसे संख्यात से गुणित करने पर वैक्रियिक काययोगियों का अवहार काल होता है। इसे संख्यात से गुणित करने पर उभय वचनयोगियों का अवहारकाल होता है। इसे संख्यात से गुणित करने पर मृषा-वचनयोगियों का अवहारकाल होता है । इसे संख्यात से गुणित करने पर सत्यवचनयोगियों का अवहारकाल होता है। इसे संख्यात से गुणित करने पर मनोयोगियों का अवहारकाल होता है। इसे संख्यात से खंडित करने पर जो लब्ध आवे उसे इसी मनोयोगियों के अवहारकाल में मिला देने पर अनुभय मनोयोगियों का अवहारकाल होता है। इसे संख्यात से गुणित करने पर उभय मनोयोगियों की अवहारकाल होता है। इसे संख्यात से गुणित करने पर मृषा मनोयोगियों का अवहार काल होता है। इसे संख्यात से गुणित करने पर सत्य मनोयोगियों का अवहारकाल होता है। इसे संख्यात से गुणित करने पर वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों का अवहारकाल होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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