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( २०६ ) टीका-तं जधा-एक्को पमत्तसंजदो अविट्ठमग्गो आहारमिस्सो जादो। सव्वचिरेण अंतोमुहुत्तेण जहण्णकालादो संखेज्जगुणेण पज्जति गदो।
आहारकमिश्रकाययोगियों में प्रमत्तसंयत जीव-नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से अन्तमुहूर्तकाल होते हैं । २१३ ।
___ अस्तु-जैसे-देखा है कि मार्ग को जिन्होंने ऐसे सात-आठ प्रमत्तसंयत जीव आहारकमिश्रकाययोगी हुए और सर्वलघु अन्तमुहूर्त से पर्याप्तपने को प्राप्त हुए। इस प्रकार जघन्यकाल कहा है।
उक्त जीवों का उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है।
अस्तु-जैसे-देखा है मार्ग को जिन्होंने ऐसे, अथवा अदृष्टमार्गी सात-आठ प्रमत्तसंयत जीव आहारकमिश्रकाययोगी हुए और अन्तमुहूर्त से पर्याप्तियों की पूर्णता को प्राप्त हुए। उसी समय में ही अन्य भी प्रमत्तसंयत जीव आहारकमिश्रकाययोगी हुए। इस प्रकार से एक, दो, तीन से आदि लेकर जब तक संख्यात शलाकाएं पूरी न हों, तब तक संख्या बढ़ाते जाना चाहिए। पुनः इन शलाकाओं से आहारकमिश्रकाययोग के काल से गुणा करने पर आहारकमिश्रकाययोग का अन्तमुहूर्तप्रमाण उत्कृष्टकाल होता है।
एक जीव की अपेक्षा आहारकमिश्रकाययोगी जीवों का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है । २१५।
अस्तु-जैसे पूर्व में जिसने अनेक बार आहारकशरीर को उत्पन्न किया है - ऐसा कोई प्रमत्तसंयत जीव आहारकमिश्रकाययोगी हुआ और सबसे लघु अन्तमुहर्त से पर्याप्तपने को प्राप्त हुआ। इस प्रकार से जघन्यकाल प्राप्त हो गया।
उक्त जीवों का उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है ।
अस्तु-जैसे-नहीं देखा है मार्ग से जिसने ऐसा कोई एक प्रमत्तसंयत जीव आहारकमिश्रकाययोगी भी हुआ, और जघन्यकाल से संख्यातगुणे सबसे बड़े अन्तर्मुहूर्त द्वारा पर्याप्तियों की पूर्णता को प्राप्त हुआ। •०७ आहारककाययोग की स्थिति •०८ आहारकमिश्रकाययोग की स्थिति
आहारककाययोग्यः संजिपर्याप्तषष्ठगुणस्थाने जघन्योत्कृष्टेन अन्तर्मुहूर्तकाले एव भवति।
___ तन्मिश्रयोगः इतरस्मिन् संज्यपर्याप्तषष्ठगुणस्थाने खलु जघन्योत्कृष्टेन तावत्काले एव भवति ।
-गोजी० मा० ६८३ । टीका
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